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________________ २१० मल: तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तीसं वासाइं अगारवासमझे वसित्ता, साइरेगाई दुवालस वासाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, देसूणाई तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामनपरियायं पाउणित्ता, बाबत्तरि वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता, खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दुसमसुसमाए समाए बहुवीइकताए तिहिं वासेहि अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसएहिं पावाए मज्झिमाए हत्थिपालगस्स रन्नो रज्जुगसमाए एगे अबीए छ?णं भत्तेणं अपाणएणं साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पच्चूसकालसमयंसि संपलियंकनिसन्न पणपन्न अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाई पणपन्न अज्झयणाई पावफलविवागाइं छत्तीसं च अपुढवागरणाई वागरित्ता पधाणं नाम अज्झयणं विभावमाणे विभावमाणे कालगए वितिकते समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधणे सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतकडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ॥१४६॥ अर्थ-उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, बारह वर्ष से भी अधिक समय तक छद्मस्थ श्रमण पर्याय में रहकर, उसके पश्चात् तीस वर्ष से कुछ कम समय तक केवलपर्याय को प्राप्त कर, कुल बयालीस वर्ष तक श्रमण पर्याय को पालन कर, बहत्तर वर्ष का आयु पूर्ण कर वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र कर्म क्षीण होने के पश्चात् इस अवसर्पिणी काल का दुषम-सुषम नामक चतुर्थ आरा बहुत कुछ व्यतीत होने पर तथा उस चतुर्थ आरे के तीन वर्ष और साढ़े आठ महीना शेष रहने पर मध्यम पावा नगरी में हस्तिपाल राजा की रज्जुक सभा में एकाकी, षष्ठम तप के साथ, स्वाति नक्षत्र का योग होते ही, प्रत्यूषकाल के समय (चार घटिका रात्रि अवशेष रहने
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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