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________________ १५ विष्णु पुराण के अनुसार- प्रायः सभी मैथिल के राजा बात्म-विद्या को आश्रय देते थे । १४ ब्राह्मणों के ब्रह्मत्व पर करारा व्यंग करते हुए अजातशत्रु ने गार्ग्य से कहा - " ब्राह्मण क्षत्रिय की शरण में इस आशा से जाय कि वह मुझे ब्रह्म का उपदेश करेगा, यह तो विपरीत है, तथापि मैं तुम्हें उसका ज्ञान कराऊंगा ही । २० atitant बाह्मण २१, शतपथ ब्राह्मण २२ आदि ग्रन्थो मे भी ब्राह्मणों से क्षत्रिय श्रेष्ठ है, यह प्रतिपादित किया है। ब्राह्मण परम्परा में हिंसा का प्राधान्य था और क्षत्रिय परम्परा में अहिसा का अहिंसा प्रेमी होने के कारण क्षत्रिय अत्यधिक आदर की दृष्टि से देखा जाता था। 'संस्कृति के चार अध्याय' में रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं- "अवतारों मे वामन और परशुराम ये दो ही हैं, जिनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। बाकी सभी अवतार क्षत्रियों के वंश मे हुए है। वह आकस्मिक घटना हो सकती है, किन्तु इससे यह अनुमान आसानी से निकल आता है कि यज्ञों पर पलने के कारण ब्राह्मण इतने हिंसा प्रिय हो गए थे कि समाज उनसे घृणा करने लगा और ब्राह्मणो का पद उन्होने क्षत्रियों को दे दिया। प्रतिक्रिया केवल ब्राह्मण धर्म के प्रति ही नहीं, ब्राह्मणों के गढ कुरु पंचाल के खिलाफ भी जगी और वैदिक सभ्यता के बाद वह समय आ गया जब इज्जत कुरु पंचाल की नही, बल्कि मगध और विदेह की होने लगी। कपिल वस्तु में जन्म लेने के ठीक पूर्व जब तथागत स्वर्ग मे देवयोनि में विराज रहे थे, तब को कथा है कि देवताओं ने उनसे कहा कि अब दापका अवतार होना चाहिए। अतएव आप सोच लीजिए कि किस देव और किस कुल में जन्म ग्रहण कीजियेगा । तथागत ने सोच समझ कर बताया कि मगधदेश और क्षत्रियवंश ही हो सकता है।" महाबुद्ध के अवतार के योग्य तो "भगवान् महावीर वर्द्धमान भी पहले एक ब्राह्मणी के गर्भ मे आये थे। लेकिन इन्द्र ने सोचाइतने बडे महापुरुष का जन्म ब्राह्मणवंश मे कैसे हो सकता हैं ? अतएव उसने ब्राह्मणी का गर्म चुराकर उसे एक क्षत्रियाणी की कुक्षी मे डाल दिया। इन कहानियो का निष्कर्ष निकलता है कि उन दिनों यह अनुभव किया जाने लगा था कि अहिंसा धर्म का महाप्रचारक ब्राह्मण नही हो सकता, इसलिए बुद्ध और महावीर के क्षत्रिय वंश में उत्पन्न होने की कल्पना लोगो को बहुत अच्छी लगने लगी । २३ बृहदारण्यक उपनिषद में भी आया है कि "क्षत्रिय से उत्कृष्ट कोई नहीं है। राजसूय यज्ञ में ब्राह्मण नीचे बैठकर क्षत्रिय की उपासना करता है। वह क्षत्रिय मे ही अपने यश को स्थापित करता है | २४ १९. प्रायेणेत आत्मविद्याश्रयिणो भूपाला भवन्ति । २०. बृहदारण्यकोपनिषद् २।१।१५ ११. कौशीतकी ब्राह्मण २६०५ २२. शतपथ ब्राह्मण ११वी कण्डिका २३. संस्कृति के चार अध्याय पृ० १०-६-११० २४. बृहदारण्यकोपनिषद् १।४।११, पृ० २३६ - विष्णुपुराण ४।५।१४
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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