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________________ साधना काल मारने को सन्नद्ध देखकर इन्द्र ने उसे वहीं स्तम्भित कर दिया और साक्षात् प्रकट होकर कहा- "अरे दुष्ट! क्या कर रहा है ? तुझे पता नहीं है ये सिद्धार्थ नन्दन वर्धमान हैं।" ग्वाला हक्का-बक्का रह गया, फिर क्षमा मांगी और भगवान को तथा इन्द्र को वन्दन कर चला गया ।२०७ --. स्वावलम्बी महावीर महावीर की साधना पूर्ण स्वावलम्बी थी। अपनी सहायता के लिए किसी के सामने हाथ पसारना तो दूर रहा, भक्ति-भावना से विभोर होकर अभ्यर्थना करने वालों का सहयोग भी उन्होंने कभी नहीं चाहा । ग्वाले की सूढ़ता को देखकर देवराज के मन में आया और प्रभु से प्रार्थना की-भगवन् ! वर्तमान में मानव अज्ञानी व मूढ़ हैं। वह आप जैसे घोर तपस्वियों को भी प्रताडित करने पर उतारू हो जाता है, आने वाले बारह वर्ष तक आपको विविध कष्टों का सामना करना पड़ेगा, अतः आज्ञा प्रदान कीजिए कि तब तक मैं आपकी सेवा में रहकर कष्ट-निवारण किया करूँ । २०८ _उत्तर देते हुए महावीर ने कहा- देवराज । न अतीत में कभी ऐसा हुआ है, न वर्तमान मे हो सकता है और न भविष्य में होगा कि "देवेन्द्र या असुरेन्द्र की सहायता से अर्हन केवल ज्ञान और सिद्धि प्राप्त करें। अर्हन तो अपने ही बल और पुरुषार्थ से केवल ज्ञान और सिद्धि प्राप्त करते हैं।२०१ -~. प्रथम पारणा द्वितीय दिन वहाँ से विहार कर भगवान वर्धमान कोल्लाग मन्निवेश में पहुँचे। वहाँ बहुल नामक ब्राह्मण के घर घृत और शक्कर मिश्रित परमान्न (खीर) की भिक्षा प्राप्त कर षष्ठभक्त का पारणा किया । १. समवायाङ्ग में कहा है-"ऋषभदेव के अतिरिक्त शेष तेवीस तीर्थकरों ने दूसरे दिन पारणा किया और पारणा में अमृत सदृश मधुर खीर उन्हे प्राप्त हुई।"२११ ___ वहाँ से विहारकर भगवान् मोराकसन्निवेश के दुईज्जन्तक जाति के तापसों (पाषण्डस्थों) के आश्रम में पधारे । वहाँ का कुलपति भगवान के पिता सिद्धार्थ का परम मित्र था।१२ भगवान् को आते देखकर वह स्वागतार्थ खड़ा
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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