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अपने मन्तब्यों के विरुद्ध विषयों का लण्डन भी किया है, पर मधुरता, शिष्टता एवं तर्क के साथ, जिससे पाठक को अखरता नही है ।
कल्प प्रदीपिका - इस टीका के रचयिता संघविजय है। विक्रम सं० १६७६ में यह टीकासमाप्त हुई है।
कल्प सुबोधिका - इस टीका के लेखक उपाध्याय विनयविजय जी हैं। विक्रम सं० १६६६ मे यह टीका निर्मित की गयी है। पूर्व की सभी टीकाओ से प्रस्तुत टीका विस्तृत है। भाषा को सरलता एवं विषय की सुबोधता के कारण यह अन्य टीकाओं से अधिक लोकप्रिय हुई है। कल्प किरणावली और कल्प दीपिका टीकाओ का खण्डन भी यत्र-तत्र किया गया है, प्रशस्ति से स्पष्ट है कि टीका का स शोधन उपाध्याय भावविजय जी ने किया है। कल्प कौमुदी इस टीका के लेखक उपाध्याय शान्तिसागर जी है विक्रम सं० १७०७ मे उन्होने यह टीका पाटण मे लिखी । श्लोक संख्या ३७०७ है। टीका में उपाध्याय विनयविजय जो की कटु आलोचना की गई है । उपाध्याय जी ने सुबोधिका टीका में जो कल्प किरणावली टीका का खण्डन किया उसी का प्रत्युत्तर इसमें दिया गया है।
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कल्प- व्याख्यान-पद्धति- इसके संकलनकार वाचक श्री हर्षसार शिष्य श्री शिवनिधान गणी है। इसमे पूर्ण कलासूत्र का अभाव है, मुनि श्री कल्याण विजय जी के अभिमतानुसार इसकी रचना १७ वी शताब्दी मे होनी चाहिए।
कल्पद ्मम कलिका - इस टीका के रचयिता खरतरगच्छीय उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभ है। टीका मे कही पर भी रचना काल का निर्देश नही किया गया है। भगवान पार्श्व की जीवनी में सर्पयुगल की घटना, तथा भगवान के मुखारविन्द से महामंत्र सुनाने की घटनाएं श्वेताम्बर चरित्र ग्रन्थों से विपरीत है ।
कल्पलता - इस टीका के रचयिता समयसुन्दर गणी है । विक्रम सं० १६६६ के आसपास उन्होने यह रचना की है । वृत्ति का ग्रन्थमान ७७०० श्लोक प्रमाण है । हर्षवर्धन ने इस टीका का संशोधन किया है ।
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कल्पसूत्र टिप्पनक — इसके रचयिता आ० पृथ्वीचन्दसूरि हैं। श्री पुण्यविजय जी के अभिमतानुसार वे चौदहवी शताब्दी मे होने चाहिए। श्लोक परिमाण ६८५ है ।
कल्पप्रदीप इस टीका के रचयिता संघविजय गणी है।
कल्पसूत्रार्थ प्रबोधनी - इस टीका के रचयिता अभिघानराजेन्द्र कोष के सम्पादक श्री गजेन्द्र सूरि है टीका काफी विस्तृत है।
इन टीकाओं के अतिरिक्त कल्पसूत्र वृत्ति उदयसागर कल्पदुर्गपदनिरुक्ति, पर्युषणा ष्टाहिका व्याख्यान पर्युषण पर्व विचार, कल्पमंजरी - रत्नसागर, कल्पसूत्र ज्ञान दीपिका - ज्ञानविजय, अवचूर्णि, अवचूरि, टब्बा बादि अनेक टीकाएं उपलब्ध होती हैं। डाक्टर हर्मन जेकोबी ने कल्पसूत्र का
१५. लेखक का ग्रंथ - 'पार्श्वनाथः एक अध्ययन' देखें ।