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________________ १२८ बार नाखून काटती है, तो सन्तान के नाखून असुन्दर होते हैं। दौड़ती है तो संतान की प्रकृति चंचल होती है । जोर से अट्टहास करती हैं तो संतान के दांत ओष्ठ, तालु और जीभ श्याम होते है। यदि वह बहुत बोलती है, तो सन्तान भी अधिक बकवास करने वाली होती है। अधिक गाती या वीणा आदि वाद्य अधिक बजाती है तो सतान बहरी होती है। यदि वह अधिक भूमि को खोदती है तो संतान के सिर मे केश विरल होते हैं अर्थात् कहीं-कही पर टाट निकल जाती है । यदि वह पंखे आदि को हवा करती है तो सन्तान उन्मत्त प्रकृति की होती है । गर्भवती माता के चिन्तन, आचरण व्यवहार, वातावरण आदि का सन्तान के निर्माण में, उसके चरित्र एवं शरीर संघटना पर बहुत असर होता है। यह तथ्य प्राचीन आयुर्वेद से ही सम्मत नहीं, बल्कि आधुनिक शरीर-विज्ञान एवं मनोविज्ञान के परीक्षणों से भी सम्पुष्ट है। हां, तो महारानी त्रिशला की प्रतिभा सम्पन्न विलक्षण सहेलियां समय समय पर महारानी को इस बात का ध्यान दिलाती रहती थी कि आप "शन: शनैः चले । शनैः शनैः बोले, क्रोध न करें, हितमित और पथ्य भोजन करें । पेट को अधिक न कसे, अधिक चिन्ता व अधिक हास-परिहास न करें। अधिक चढ़ने उतरने का श्रम भी न करें।" ___ महारानी त्रिशला भी सहेलियों की बात को ध्यान से सुनती और विवेकपूर्वक गर्भ का पालन करती। गर्भ के प्रभाव से माता त्रिशला को दिव्य दोहद उत्पन्न हुए । मैं अपने हाथों से दान दू, सद्गुरुओं को आहार आदि प्रदान करू, देश में अमारी पटह बजवाऊ', कैदियों को कारागृह से मुक्त कराऊ समुद्र, चन्द्र और पीयूष का पान करूँ, उत्तम प्रकार के भोजन, आभूषण धारण करु, सिंहासन पर बैठकर शासन का संचालन करुं और हस्ती पर बैठकर उद्यान में आमोद-प्रमोद करूं । राजा सिद्धार्थ ने रानी के समस्त दोहद पूर्ण किये। कहा जाता है कि एक बार रानी त्रिशला को एक विचित्र दोहद उत्पन्न हुआ। मैं इन्द्राणी के कानों से कुण्डल-युगल छीनकर पहनू । दोहद पूर्ण
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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