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---, गर्म परिपालना
मल:
तए णं सा तिसला खत्तियाणी ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सवालंकारभूसिया तं गभं नाइसीएहिं नाइ उण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाइए हिंनाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं नातिनिद्धेहिं नातिलुक्खेहिं नातिउल्लेहिनातिसुक्केहिं उडुभयमाणसुहेहि भोयणच्छायणगंधमल्लेहिं ववगयरोगसोगमोहभयपरित्तासा जं तस्स गम्भस्स हियं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं पइरिक्कसुहाए मणाणुकूलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुनदोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वुच्छिन्नदोहला विणीयदोहला सुहं सुहेणं प्रासयइ सयति चिटठइ निसीयइ तुयट्टइ सुहं सुहेणं तं गब्भं परिवहद ॥२॥
___ अर्थ-उसके पश्चात् त्रिशला क्षत्रियाणी ने स्नान किया, बलिकर्म किया कौतूक मगल और प्रायश्चित्त किया। सम्पूर्ण अलंकारों से भूषित हुई। वह गर्भ का पोषण करने लगी । उसने अत्यन्त शीत, अत्यन्त उष्ण, अत्यन्त तीक्ष्ण, अत्यन्त कटुक, अत्यन्त कसैले, अत्यन्त खट्टे, अत्यन्त मीठे, अत्यन्त स्निग्ध, अत्यन्त रूक्ष, अत्यन्त आर्द्र ऋतु से प्रतिकूल भोजन, वस्त्र, गंध और मालाओ का त्याग कर दिया। ऋतु के अनुकूल सुखकारी भोजन, वस्त्र, गंध और मालाओं को धारण किया। वह रोगरहित, शोकरहित, मोहरहित, भयरहित, त्रास रहित, रहने लगी। तथा उस गर्भ के लिए हितकर, परिमित पथ्य और गर्भ का पोषण करने वाला आहार-विहार करती हुई उपयोग पूर्वक रहनेलगी। वह देश और काल के अनुसार आहार करती। दोष रहित, मुलायम आसनपर बैठती, एकान्त शान्त-विहारभूमि में रहने लगी।
उसको गर्भ के प्रभाव से प्रशस्त दोहद उत्पन्न हुए। उन दोहदों को