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सिद्धार्थ राजा के भवन में एकत्रित करने लगे। प्राप्त होने वाले उन प्राचीन महानिधानों (धन भण्डारों) का परिचय इस प्रकार है:
उन धन भण्डारों का वर्तमान में कोई भी अधिकृत अधिकारी नहीं रहा, उसमें कोई भी वृद्धि करने वाला नही रहा, उन धन भण्डारों के जो स्वामी थे उनके गोत्र मे भी कोई नहीं रहा। उन धन भण्डारों के अधिकारियों का भी उच्छेद हो गया, और अधिकारियों के गोत्रस्थ व्यक्तियों का भी उच्छेद हो गया, उन घरों का नाम निशान भी अवशेष नहीं रहा। ऐसे धनभण्डार जहां कही भी ग्रामों में, (जहां पर कर आदि नही लगता) आगरखदानों में, नगरों में, खेटकों में (धूली से निर्मित गढवाले ग्रामों मे) नगर की पंक्ति में न शोभित हों ऐसे ग्रामों मे, जिन ग्रामों के सन्निकट चारों तरफ दो-दो कोस तक ग्राम न हों, ऐसे मडम्बों में, जल और स्थल इन दोनों मार्गों से जहाँ जाया जा सके ऐसे द्रोणमुखों में, जल और स्थल मार्ग में से जहाँ केवल एक मार्ग से जाया जाए ऐसे पत्तनों में, तीर्थस्थल या तापसो के निवासस्थल आश्रमों में, सम-भूमि में जहां किसान कृषि करके धान्य की रक्षा हेतु धान्य रखता है ऐसे संवाहों में, सेनाएँ, सार्थवाह और पथिक जहा ठहरते हैं ऐसे सन्निवेशों में अर्थात् पड़ावों में, या सिंघाड़े की तरह तीन मार्ग एकत्रित होते है वहां तिराहे, पर, चारमार्ग एकत्रित होते है वहां चौराहे पर, या अनेक मार्ग एकत्रित होते है वहां पर, राजपथ मे, देवालयों में, ग्राम अथवा नगर के उच्च स्थानों में निर्जन गाँव और नगर के स्थलों मे, नालियों मे, बाजार और दुकानें जहाँ हो, ऐसे स्थलों में, देवगृह, चौराहा, प्याऊ और उद्यानों में, उजामण (गोठ) करने के स्थलों में, वन में, वन खण्डों मे, श्मशान में, शून्यगृहों में, पर्वत की गुफाओं में, शान्ति गृहों में, (जहां पर बैठकर शान्ति कर्म किया जाता है) पर्वत को कुरेद कर बनाए गए गृहों में, सभास्थलों में, किसान जहां रहते हों ऐसे घरों में, भूमि में, जहाँ पर गुप्त रूप से रवखे हुए धन भण्डार है, उन्हें लाकर वे जम्भकदेव सिद्धार्थ राजा के भवन में स्थापित करते हैं। मूल :
जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे नायकुलंसि