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________________ १११ देवाणुप्पिया ! अरहंतमातरो वा चकवट्टिमायरो वा अरहंतसि वा चकहरंसि वो गन्भं वक्कममाणंसि एतेसिं तीसाए महासुमिणाणं इमे चोदस महासुमिणे पामित्ता णं पडिबुझति, तं जहा-गय गाहा ॥७॥ __ अर्थ-हे देवानुप्रिय ! निश्चित रूप से हमारे स्वप्न-शास्र में बयालीस स्वप्न (सामान्य फल वाले) कहे है, और तीस महास्वप्न (विशेष फल वाले) बताए हैं । इस प्रकार बयालीस और तीम कुल मिलाकर बहत्तर स्वप्न बतलाए गए हैं। उनमें से हे देवानुप्रिय । अरिहन्त को माता, और चक्रवर्ती की माता जब अरिहन्त या चक्रवर्ती गर्भ मे आते है तब वह तीस महास्वप्नों में से इन चौदह महास्वप्नों को देखकर जागृत होती है। जैसे कि हाथी, वृषभ आदि ।'६" मल : वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गम्भं वकममाणं सिं एएसि चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णतरे सत्त महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति ॥७२॥ अर्थ-वासुदेव की माताए वासुदेव के गर्भ में आने पर इन चौदह महा स्वप्नो में से कोई सात महास्वप्नो को देखकर जागृत होती है। मल: बलदेवमायरो वा बलदेवंसि गम्भं वकममाणंसि एएसिं चोददसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झति ॥७३॥ . अर्थ-बलदेव की माताएँ, जब बलदेव गर्भ में आते है तब इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी चार महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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