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________________ --. सिद्धार्थ से स्वप्न-चर्चा मल:... तए णं सा तिसला खत्तियाणी इमेयारूवे ओराले चोदस महासुमिणे पासित्ता गं पडिबुद्धा समाणी हट्ट जाव हयहियया धाराहयकलंबपुष्फर्ग पिव समूससियरोमकूवा सुमिणोग्गहं करेइ, सुमिणोम्गहं करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, सयणिज्जाओ अन्भुद्वित्ता पायपीढातो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता अतुरियं अचवलमसंभताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव सयणिज्जे जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिद्धत्यं खत्तियं ताहिं इट्टाहिं कताहिं पियाहि मणुनाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरियाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी संलवमाणी पडिबोहेइ ॥४॥ . अर्थ-उसके पश्चात् वह त्रिशला क्षत्रियाणी इस प्रकार पूर्वोक्त चौदह महास्वप्नों को देखकर जागृत हुई । हर्षित और सन्तुष्ट हुई यावत् मेघधारा से आहत कदम्ब पुष्प के समान उसके रोम-रोम पुलकित हो गए। वह स्वप्नों को स्मरण करती है, स्मरण करके शय्या से उठती है और उठकर पादपीठ पर उतरती है और उतरकर अ-त्वरित,(धीमे-धीमे) अचपल, असंभ्रान्त,(धैर्यपूर्वक) अविलम्ब राजहसी-सी मन्द-मन्द गति से चलकर जहां पर सिद्धार्थ क्षत्रिय का शयन कक्ष है और जहां पर सिद्धार्थ क्षत्रिय सुखपूर्वक सोया है, वहाँ माती है। आकर सिद्धार्थ क्षत्रिय को इष्ट, कान्त, प्रिय मनोज्ञ, मनोहर, उदार, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्य, मंगलकारी, शोभायुक्त हृदय को रुचिकर और हृदय को आल्हादकारी मित, मधुर एवं मञ्जुल शब्दों से जगाती है।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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