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गर्भ संहरण : हरिभेगमेवी को माह्वान
(१०) असंयत पूजा-संयत सदापूजनीय और वन्दनीय होते हैं। किन्तु संयत की तरह असंयत की पूजा होना एक महार आश्चर्य है। प्रस्तुत अवसर्पिणी काल में भगवान् सुविधिनाथ के तीर्थ में ऐसा समय आया जिस समय श्रमण व श्रमणियां नहीं रहीं और असंयतियों की ही पूजा हुई। यह भी आश्चर्य माना गया।'४५
ये दस आश्चर्य निम्न तीर्थंकरों के समय में हुए हैं:-(१) भगवान् ऋषभ के समय उत्कृष्ट अवगाहना वाले एक सौ आठ मुनि मोक्ष गये । (२) भगवान् शीतलनाथ के समय हरिवश की उत्पत्ति हुई। (३) भगवान् अरिष्टनेमि के समय श्रीकृष्ण अपरकका गये । (४) मल्लि भगवती स्वयं स्त्री तीर्थकर हुई। (५) भगवान् सुविधिनाथ के तीर्थकाल में असंयत की पूजा हुई। शेष पाँच आश्चर्य (६) गर्भापहरण । (७) चमरेन्द्र का उत्पात (८) अभावित परिषद् (8) सूर्य चंद्र का आकाश से उतरना (१०) और अरिहंत को उपसर्ग ये भगवान् श्री महावीर के समय में हुए ।१४ मूल:
अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे माहणकुडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गम्भताए वकते ॥१६॥
अर्थ-(शकेन्द्र विचार करता है) ये श्रमण भगवान महावीर जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, ब्राह्मण कुण्डग्राम नामक नगर में कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी जालन्धर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भरूप में आये हैं।
- हरिणंगमेषी को आह्वान मूल :
तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं