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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका बचने के लिये कालकाचार्य ने उसे काठियावाड़ भाग जाने को सलाह दी। वह बेचारा काठियावाड़ भाग गया और उसी का अनुसरण कर धीरे धीरे अन्य राजा भी काठियावाड़ भाग गए। वहाँ पर उन लोगों ने छोटे छोटे राज्य स्थापित कर लिए। . आगे चलकर उसी कालकाचार्य के मित्र ने गर्दभिल पर आक्रमण किया और उसे पूर्ण रूप से परास्त कर दिया। बाद में पराभूत गर्द मिल को जंगलों में इधर-उधर भटकते समय शेर का शिकार बनना पड़ा। इधर बदिनी सरस्वती मुक्त कर दी गई। इस प्रकार कालकाचार्य ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की। इतना वर्णन करने के उपरांत कालकाचार्य ने किस प्रकार भड़ौच और प्रतिष्ठान इत्यादि स्थलों की यात्रा की; वहाँ के राजा जैन-धर्मानुयायी कैसे बने इत्यादि का वर्णन है ; परंतु उससे हमें कोई सरोकार नहीं । विक्रमादित्य द्वारा शकों का पराभव और संवत् की स्थापनाप्रथम ८९ श्लोकों में गर्दभिल के पराभव और उज्जयिनी में शक राज्य की स्थापना का वर्णन कर कवि ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण श्लोक लिखे हैं शकानां वशमुच्छेद्य कालेन कियताऽपि हि । राजा श्रीविक्रमादित्यः सार्वभौमोपमोऽभवत् ॥ ९ ॥ स चोन्नतमहासिद्धिः सौवर्ण पुरुषोदयात् । मेदिनीमनणां कृत्वाऽधीकरद्वत्सरं निजम् । ९१ ॥ ततो वर्षशते पंचत्रिशता साधिके पुनः । तस्य राज्ञोऽन्वयं हत्वा वत्सरः स्थापितः शकैः ॥१२॥ 'इन श्लोकों से यह विदित होता है कि जिस शक राजा ने गदभिल का पराभव किया वह भी आगे चलकर विक्रमादित्य नामक राजा से पराभूत हुआ। अपनी विजय के उपलक्ष में विक्रमादित्य ने अपने एक सवत् की स्थापना भी की, और उसके १३५ वर्ष बाद शकों ने विक्रम के उत्तराधिकारियों को हराकर अपना निज का शक (संवत् ) प्रारंभ किया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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