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________________ ६८ . नागरीप्रचारिणी पत्रिका भारतीय संवत्सर के षड ऋतुओं का चक्र इस प्रकार के पर्यों से भरा हुआ है। उनके सामयिक अभिप्राय को पहचान कर उन्हें फिर से राष्ट्रीय जीवन का अंग बनाने की आवश्यकता है। उद्यानों की क्रीडाएँ और कितने प्रकार के पुष्पोत्सव संवत्सर की पर्वपरपरा में अभी तक बच गए हैं। वे फिर से सार्वजनिक जीवन में प्राण-प्रतिष्ठा के अभिलाषी हैं। इस विश्वगर्भा पृथिवी के पुत्रों को विश्वकर्मा कहा गया है (१३)। अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों की योजना उन्होंने की है और नए संभारों को वे उठाते रहते हैं। पृथिवी के विशाल खेतों में उनके दिनगत के परिश्रम से चारों ओर धान्यसंपत्ति लहराती है। उन्होंने अपनी बुद्धि और श्रम से अनेक बड़े नगरों का निर्माण किया है जो देवनिर्मित से जान पड़ते हैं यस्याः पुरो देवकृतः क्षेत्रे यस्या विकुर्वते । प्रजापतिः पृथिवीं विश्वगर्भा आशामाशां रण्यां नः कृणोतु, (४३) पृथिवी को महापुरियों में देवताओं का अंश मिला है इसीलिये तो वे अमर हैं। महापुरियों में देवत्व की भावना से स्वयं भूमि को भी देवत्व और सम्मान मिला है। जंगल और पहाड़ों से भरी हुई, तथा समतल मैदान और सदा बहनेवाली नदियों से परिपूर्ण भूमि को हर एक दिशा में नगरों की शोभा से रमणीय बना देना राष्ट्र का बड़ा भारी पराक्रम-कार्य माना जाता है । संस्कृति के अनेक अध्यायों का निर्माण इन नगरों में हुआ है जिसके कारण उनको पुन: प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए। प्राचीन भारत में नगरों के अधिष्ठाता देवताओं की कल्पना की गई थी। उन नगर-देवताओं को फिर से पौर-पूजा का उपहार चढ़ाने के लिये सार्वजनिक महोत्सवों का विधान होना चाहिए। पृथिवी पर जो ग्राम और अरण्य हैं उनमें भी सभ्यता के अंकुर फूले-फले हैं। ग्रामों के जनपदीय जोवन में एवं जहाँ अनेक मनुष्य एकत्र होते हैं उन संग्रामों या मेलों में, मातृभूमि की प्रशंसा के लिये उसके पुत्रों के कंठ निरंतर खुलते रहें ये प्रामा यदरण्ययाः सभा अधि भूम्यां ये संग्रामास्समितयस्तेषु चारु वदेम ते । (५६) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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