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________________ ३८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका समय विदेशों में होता प्रतीत होता है। दारा के लेखों में वह जनपद- विशेष के लिये न होकर भारत देश के लिये ही प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि हाथीदाँत का व्यापार जिसके कारण हिदु शब्द का उल्लेख हुआ है, सिंध सागर दोआब के भूप्रदेश की अपेक्षा देश के पूर्वी भागों से ही अधिक होता था । सिंधु - हिंदु समीकरण के आधार से ही प्राचीन यूनानी लेखकों ने इस देश को इंडोस (Indos) कहा । अंत्य सकार प्रथमा के एकवचन का चिह्न है जैसा सं० स घुस और ईरानी हिंदुष में भी पाया जाता है। इसी परंपरा से भारतवर्ष के हिंदुस्तान, इंडिया, अब के नाम प्रचलित हुए हैं। इन नामों के विषय में एक बात ध्यान देने की है कि स्वयं भारतवासियों ने अपने देश के नामकरण में भरत शब्द से प्रचलित परंपरा को अपनाया, किंतु विदेशी लेखकों ने सिंधु शब्दवाले नामों को ग्रहण किया। चीनी लोगों ने भी सिंधु नाम की परंपरा का व्यवहार क्रिया। चीनी सेनापति पन्-योङ ने वि० १८२ (१२५ ई०) में चीनी सम्राट् को पश्चिमी देशों का वर्णन करते हुए लिखा है कि थि-एन-चु देश (देवों का देश ) शिन्तु नाम से भी प्रसिद्ध है। शिन् - तु सिंधु का ही चीनी रूप है* । चीनी साहित्य में इसी को 'इन् तु-को' भा कहा है जिसमें इन्-तु, शिन् तु (सिंधु) का रूपांतर है और 'को' का अर्थ देश है + | * फारेन नोटिसेज् श्रॉफ सदर्न इंडिया, लेखक श्री नीलकांत शास्त्री, पृ० १० । + 'इन्-तु-को' नाम की सूचना मुझे श्री शांति भिक्षुजी, चीनभवन, शांतिनिकेतन, से प्राप्त हुई है जिसके लिये मैं उनका आभारी हूँ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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