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________________ २८८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका स्याम जिस समय भारतीय आवासक चंपा को आवासित कर रहे थे लगभग उसी समय उसके उत्तर-पश्चिम में स्याम राज्य का उद्भव हो रहा था। आठवीं सदी के एक लेख से ज्ञात होता है कि तामिल, देश के कुछ लोग, जो वैष्णव मतावलंबी थे, समुद्र-मार्ग से स्याम पहुँचे। इन्होंने वहाँ अपनी बस्तियाँ बसाई और व्यापार के साथ-साथ संस्कृति-प्रचार भी किया। ये लोग 'मणिग्राम' व्यापारिक संघ के सदस्य थे, परंतु भारत और स्याम का पारस्परिक संबंध इससे सैकड़ों वर्ष पूर्व ही स्थापित हो चुका था। लगभग तीसरी शताब्दि से ही भारतीय आवासकों ने स्याम जाना प्रारंभ कर दिया था और भारतीय नगरों के नाम पर बस्तियाँ बसानी शुरू कर दी थीं। १३वीं शताब्दि तक स्याम, कंबुज के ही अधीन रहा। स्याम के इन एक हजार वर्षों का इतिहास कंबुज के इतिहास से पृथक् नहीं किया जा सकता। अगला इतिहास तीन भागों में बँटा हुआ है। ये तीन भाग सुखोदय, अयोध्या और बैंकॉक इन तीन नगरों के समय समय पर राजधानी के रूप में परिवर्तित होने के कारण हैं। १७वीं सदी के प्रारंभ में पोर्चुगीज, डच, फ्रेंच और अगरेज भी स्याम पहुँचे। इन गोरे व्यापारियों के पीछे पीछे गोरे पादरी भी प्रविष्ट हुए, परन्तु स्याम में इनका संबंध शांतिपूर्ण रहा। इस काल में स्याम और लंका के बीच परस्पर भिक्षु-मंडलों का आवागमन भी होता रहा। २०वीं शताब्दि के श्रारंभ में स्याम का कुछ प्रदेश अँगरेजों ने और कुछ फ्रेंच लोगों ने छीन लिया। अतः वर्तमान स्याम प्राचीन स्याम से छोटा है। यह एक प्रसिद्ध कहावत है कि स्यामी संस्कृति भारतीय संस्कृति की विरासत है। स्याम के धर्म, भाषा और प्रथाओं पर अब तक भारत का अतुल प्रभाव विद्यमान है। वहाँ के संस्कार भारतीय संस्कारों का स्मरण कराते हैं। वहाँ का राजा अपने नाम के पीछे 'राम' शब्द का प्रयोग करता है। सर्वसाधारण के नाम भी भारतीय नामों की ही तरह हैं। स्यामी लोगों का वर्तमान धर्म बौद्धधर्म है। बौद्धधर्म का सर्वप्रथम प्रवेश ४२२ ई० में हुश्रा। बौद्धधर्म की यह धारा कंबुज और बर्मा दोनों ही ओर से बही। बौद्धधर्म का विशेष प्रसार १३वीं शताब्दि के बाद हुआ। इससे पूर्व वहाँ हिंदूधर्म का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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