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________________ भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध २२३ देती है। इस राज्य का वास्तविक नाम तो ज्ञात नहीं होता, हाँ, चीनी लोग इसे फूनान कहते थे। फूनान की स्थापना दक्षिण भारत के कौडिन्य नामक ब्राह्मण ने की थी। इसने वहाँ के नागपूजकों को परास्त कर, सोमा नामक कन्या से विवाह कर सोमा के नाम से सोमवंश चलाया। फूनान के इन अर्ध भारतीय राजाओं ने भारत से संबंध स्थापित करने का भी यत्न किया। २४० ई० में चद्रवर्मा ने भारत से संबंध जोड़ने के लिये एक दूतमंडल यहाँ भेजा था। इसके प्रत्युत्तर में एक दूतमडल भारत से फूनान भेजा गया। चीनी विवरणों के अनुसार चौथी शताब्दि में एक दूसरे कौंडिन्य का नाम सुनाई देता है। इसने फूनान के शासन की बागडोर अपने हाथ में लेकर रहन-सहन, सामाजिक संगठन तथा राज्य-प्रबध -सभी क्षेत्रों में भारतीय प्रथाओं का अनुसरण किया। पाँचवीं शताब्दि में कौडिन्य जयवर्मा राज्य करता दिखाई देता है। इसने ४८४ ई० में भारतीय भिक्षु शाक्य नागसेन को एक दूतम डल के साथ चीन भेजा। इस समय के विवरणों से पता चलता है कि फूनान में हिंद और बौद्ध दोनों धर्मों का प्रचार था, किंतु शैव धर्म का प्राबल्य था। फूनान का यह हिंदू राज्य छठी शताब्दि तक बना रहा। छठी शताब्दि के अंत में कबुज आक्रमणकारी चित्रसेन ने इसे छिन्न-भिन्न कर दिया। जिस समय फूनान शक्तिशाली राज्य था, उस समय कंबुज उसका एक अधीनस्थ राज्य था। शिलालेखों से पता चलता है कि कबुस्वयंभव कबुज का मनु था। यही इस राज्य का श्रादि सस्थापक था। इसके नाम से ही राज्य का नाम कबुज पड़ा। श्रतवर्मा इस राज्य का प्रथम राजा था। आगे आनेवाले राजा 'श्रुतवर्ममूला' कहे गए। फूनान को जीतनेवाला चित्रसेन कबुज के राजा भववर्मा का भाई था। इस काल के लेखों को देखने से प्रतीत होता है कि इस समय हिंदू संस्कृति उन्नति-पथ पर आरूढ़ थी। ८८९ ई० में यशोवर्मा राजा हुआ। इसने महेंद्र पर्वत पर नई राजधानी बनवाई। यह नगर यशोधरपुर, महानगर अथवा कबुपुर नाम से प्रसिद्ध था। वर्तमान समय में अंकोरथोम में इसके ध्वंसावशेष उपलब्ध हुए हैं। नगर के मध्य में बेयन का विशाल शिवमंदिर विद्यमान है। ९४४ ई० में राजेंद्रवर्मा सिहासनारूढ़ हुआ। इसके समय कंबुज में बौद्धधर्म का प्रवेश हुआ। ९६८ ई० में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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