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________________ विष्णु का विक्रमण जा सकता। व्यक्ति और समाज की स्थिति के लिये राष्ट्ररूपी विष्णु का पराक्रम आवश्यक है। भारतीय राजनीतिशास्त्र के अनुसार राजा या राष्ट्र. पति विष्णु का स्वरूप है (नाविष्णुः पृथिवीपतिः)। जिस प्रकार विष्णु के यशोवीर्य का गान किया जाता है उसी प्रकार राष्ट्र में विक्रम करनेवाले राजर्षियों . की कीर्ति का बखान भी राष्ट्रीय अभ्युदय के लिये आवश्यक है। विक्रम का गान प्रजाओं का धर्म है। विक्रम की नाराशंसी से ही जाति के जीवन में ऊर्जित रस भरता है। ऋग्वेद के विक्रमण सूक्त ऋग्वेद में विष्णु के विक्रम का वर्णन करनेवाले कई सूक्त हैं। इनमें विक्रमण की महिमा, उसका प्रकार और परिणाम सृष्टि के विराट् धरातल से कहा गया है। विक्रम चाहे जिस क्षेत्र में हो, एक जैसे नियमों के अनुसार प्रकट होता है। विक्रम के भाव को समझने के लिये इन सूक्तों का भावार्थ यहाँ दिया जाता है। (१) ऋग्वेद १।२२।१६-२१ १-'क्योंकि विष्णु ने पृथिवी के सात लोकों में विक्रम किया है, इसलिये देव हमारे रक्षक हैं। ___सप्तांग राज्य पृथिवी के सात लोकों के समान है। उस सप्तांग राज्य में राजा जब तक विक्रम नहीं करता तब तक अन्य जन भी रक्षा करने में असमर्थ रहते हैं। २-'विष्णु ने विक्रम के द्वारा तीन पैर रखे और सब कुछ उन पैरों की धूलि के नीचे समा गया।' जीवन के जिस क्षेत्र में व्यक्ति या समाज का वामन स्वरूप अपने क्षुद्र भाव को त्यागकर विराट् भाव को प्रहण कर लेता है, वहीं वह विष्णुपन का परिचय देता है। जहाँ विष्णु-भाव है, वहीं त्रेधा विचंक्रमण का नियम पाया जाता है। ३-जिस विष्णु ने तीन पैरों के द्वारा विक्रम किया, वह गोपा है,' अर्थात् रक्षा करने में स्वयं समर्थ है और स्वयं अपने वीर्य से गुप्त (रक्षित) है। 'वह धृतिशील है, कोई बाहरी शक्ति उसे दबा नहीं सकती। अपने इन दो गुणों के कारण ही वह जीवन के सब धर्मों को धारण करता है ( अतो धर्माणि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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