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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका स्थान बना रहा। १८७८ में यह चीनी साम्राज्य के सिन्-क्या प्रांत में मिला लिया गया। आज से श्राधी शताब्दि पूर्व किसी को इस बात का स्वप्न भी न था कि खोतन की वह मरुभूमि जिसमें सब ओर रेत ही रेत दिखाई देता है, एकाएक किसी प्राचीन सभ्यता के केंद्र रूप में प्रकट होगी। पिछले कुछ वर्षों से विदेशी अनुसंधानकर्ताओं द्वारा विशेषत: सर आरल स्टाईन द्वारा जो गवेषणाएं की गई हैं उनसे यही परिणाम निकलता है कि कुछ शताब्दि पूर्व इस देश में बौद्ध संस्कृति उन्नति के शिखर पर आरूढ़ थी। वहाँ सैकड़ों विहार थे जिनमें हजारों भिक्षु रहते थे। इन भिक्षुओं में कई एक धुरंधर विद्वान थे। बुद्धसेन ऐसे ही पंडितों में से एक था। व्यापारिक दृष्टि से भी इस देश का बड़ा महत्त्व था। काशगर से चीन और चीन से भारत आनेवाले सार्थवाह ( काफिले ), व्यापारी और यात्री खोतन होकर ही आया-जाया करते थे। फाहियान, सुङ्युन, ह्वन्-त्साङ् और मार्कोपोलो ने इसी मार्ग का अनुसरण किया था, परंतु किसी दैवी विपत्ति के कारण शिक्षा और सभ्यता का यह केंद्र निर्जन हो गया। आकाश को चूमनेवाले विहार, तारों से बातें करनेवाले स्तूप, प्रतिमाओं से विभूषित मंदिर तथा सहस्रों हस्तलिखित ग्रंथों से युक्त पुस्तकालय-सब एक साथ रेतीले टीलों के गर्भ में समा गए। इस सर्वतोमुख विनाश के परिणाम स्वरूप आज से ५० वर्ष पूर्व खोतन की अत्युन्नत सभ्यता की कोई कल्पना भी न कर सकता था। इन अनुसंधानों द्वारा यद्यपि हमारे बहुत से लुप्त स्मृति-चिह्न प्रकाश में आ चुके हैं, फिर भी खोतन के सूखे हृदय में अब भी न जाने कितना सांस्कृतिक रस भरा पड़ा है। चीन यद्यपि भारत और चीन के पारस्परिक संबंध पर विद्वानों ने भिन्न भिन्न प्रकार से प्रकाश डाला है, तथापि हम यहाँ चीनी विवरणों के आधार पर ही लिखेंगे। इन विवरणों के अनुसार हॉन-वंशीय राजा मिल्ती ने ६५ ई० में १८ व्यक्तियों का एक दूतमंडल भारत भेजा जो लौटते हुए अपने साथ बहुत से बौद्ध ग्रंथ तथा कश्यप मातंग और धर्मरक्ष नामक दो भिक्षुओं को चीन ले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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