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________________ भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध २०३ मंडल (मइसूर ) में महादेव को, योन (यूनानी जगत् ) में महारक्खित को, हिमवंत (हिमालय ) प्रदेश में मज्झिम को, सुवनभूमि (पेगू , मौलमीन ) में . सोण और उत्तर को, लंका में महामहिंद ( महेंद्र ) को, वनवासी (उत्तरीय कनारा) में रक्खित को, अपरांत (बंबई) में योनधम्मरक्खित को और महारट्ठ ( महाराष्ट्र) में महाधम्मरक्खित को भेजा गया। इन प्रचारक-मंडलों को अपने कार्य में आशातीत सफलता प्राप्त हुई। ताम्रपर्णी ( लंका) जिस समय पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध-सभा के अधिवेशन हो रहे थे और मोद्गलिपुत्र तिष्य विदेशों में प्रचारक-मंडल भेजने की योजना बना रहे थे, उसी समय लंकाधिपति देवानांप्रिय तिष्य ने अशोक के पास एक दूतमंडल भेजने का विचार किया। इस दूतमंडल का नेता महाअरिष्ट था। दूतमंडल के पाटलिपुत्र पहुँचने पर अशोक ने तिष्य को महाअरिष्ट द्वारा संदेश भेजा"मैं तो बुद्ध, धर्म और संघ की शरण में आ गया हूँ। तुम भी अपने को त्रिरत्न की शरण में लाने के लिये तैयार करो।' इधर महाअरिष्ट, तिष्य को अशोक का संदेश सुनाने जा रहा था और उधर कुमार महेंद्र ने इष्टिय, शंबला, उक्तिय और भद्रशाल के साथ लंका की ओर प्रस्थान किया। लंका में मिश्रक पर्वत पर तिष्य से महेंद्र की भेट हुई। तिष्य ने अनेक प्रश्न किए जिनका महेंद्र ने बड़ी बुद्धिमत्ता के साथ उत्तर दिया । उत्तरों से प्रभावित होकर तिष्य ने अपने अनुयायियों सहित बौद्धधर्म की दीक्षा ली। तिष्य की पुत्री अनुला ने भी दीक्षा लेनी चाही। इसके लिये एक दूसरा दूत-मंडल कुमारी संघमित्रा को आमंत्रित करने तथा बोधिद्रुम की शाखा लाने के लिये भारत भेजा गया। संघमित्रा के आने पर अनुला ने अपनी सहेलियों सहित संघ में प्रवेश किया और बोधिद्रम की शाखा को अनुराधपुर के महाविहार में स्थापित किया गया, जहाँ वह आज भी विद्यमान है और संसार के प्राचीनतम ऐतिहासिक वृक्ष के रूप में प्रसिद्ध है। २३४ वि०पू० में तामिल राजा सेन और गुत्तिक की संमिलित सेनाओं ने लंका पर आक्रमण कर शासन करना प्रारंभ किया। यद्यपि ये लोग बौद्ध न थे तथापि इनकी नीति धार्मिक सहिष्णुता की थी। इन तामिल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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