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________________ १७० . नागरीप्रचारिणो पत्रिका एकपाद-(सभा०, ४७११६) इनके संबंध में भी बहुत कम जानकारी है। दिग्विजयपर्व (२८,४७ ) में दक्षिण को चढ़ाई में एकपादों का वर्णन ताम्रक द्वीप और रामक पर्वत के बाद आया है। ताम्रद्वीप 'पंचदडछत्रप्रबंध' नामक प्रबंध (ज० ए० १९२३,५१) के अनुसार खंभात में एक जगह थी; जिन नगरों को सहदेव ने एकपादों के बाद जीता, उनका नाम शूरक (सुपारा) तथा संजयंती (आधु० संजान ) था। इससे प्रकट होता है कि एकपादों का निवासस्थान गुजरात, कछ और काठियावाड़ था। उन्हें महाभारत (२८, ४७) में वनवासी कहा गया है। इससे पता लगता है कि वे शायद आधुनिक भीलों के वंशज थे। मेगास्थनीज (फ्रेगर्मट २९; स्ट्रैबो १५, ५) ने उनके विषय में एक कथा उद्धृत की है। भारतीय दार्शनिकों ने उसे बताया था कि ओकुपेद लोग घोड़े से भी तेज चलते थे। संस्कृत एकपाद और ग्रीक ओकुपेद के माने एक ही हैं-एक पैरवाले। इससे यह न समझना चाहिए कि एकपाद काल्पनिक थे। इससे केवल यही माने निकलते हैं कि वे तेज चल सकते थे। ऊपर लिखित जातियों ने युधिष्ठिर को सोना-चाँदी भेंट की (४७१६)। एकपादों ने अनेक वर्णवाले, वन से पकड़े हुए, तेज घोड़ों को भेंट किया (४७१८)। यदि एकपादों का निवासस्थान कछ था, तो वहाँ आज की तरह ही तेज घोड़े पैदा होते थे। । चीन, हूण, शक तथा ओड्रों का नाम (४७१९) एक क्रम से महाभारत में आया है। उनके संबध में जो कुछ हमें ज्ञात है उसका विवरण नीचे दिया जाता है। चीन-(४७।१९) भारतीय साहित्य में चीन एक नस्ल का बोधक था। खास चीन के लिये उसका व्यवहार सभापर्व में हुआ है। चीन के लोग आसाम के भगदत्त की फौज में भी थे ( २३।१९)। यहाँ शायद चीन से मतलब उपरले बर्मा के चिन लोगों से हो। हूण-(४७१९) इन हूणों का गुप्तकाल के हूणों से कोई संबध नहीं; इनकी पहचान ह्यग्नू से की जा सकती है, जो मंगोलिया में रहते थे और जिन्होंने यू-शी को मान्-स्यान की तलभूमि से निकाल बाहर किया था। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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