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________________ - मागरीप्रचारिणी पत्रिका श्रीस्वनर, मलयर, महेंद्र', श्वेतगिरि, चकोर', पर्वतों के पति थे; जिनका शासन संपूर्ण नृपति-मंडल के द्वारा शिरोधार्य किया गया था; सूर्य की किरणों से प्रफुमित कमल के समान जिमका निर्मल मुखमंडल था; जिसके वाहनों ने तीन समुद्रों के जल का पान किया था; पूर्ण चंद्रमंडल के सदृश जिनका मुख श्रोस पन तथा प्रियदर्शन था; श्रेष्ठ हाथी के विक्रम के तुल्य जिनका विक्रम था; नागराज ( शेष ) के फणों के समान जिनकी भुजाएँ शक्तिसपन्न, विशाल, वीर्घ तथा दर्शनीय थी; जिनके निर्भय हाथ मिरंतर अभयोक्क दान देने के कारण गीले हो गए थे, जो अपनी अविपन्न माता की शुभषा में • रत रहते थे; देश और काल के अनुसार ही जिन्होंने धर्म, अर्थ और काम को यथोचित रूप से विभक्त किया था, पौर जनों के सुख-दुःख में पूरी तरह से जो समिलित रहते थे जिन्होंने क्षत्रियों के दर्प और अभिमान को चूर कर दिया था; शक, यवन और पल्हवों का जिन्होंने संहार किया था; धर्म से उपार्जित करों का ही जो विनियोग करते थे अपराध करनेवाले शत्रुओं को भी जो प्राणदंड देना अच्छा नहीं समझते थे; द्विजों और शूद्रों के कुटु'बों को जिन्होंने बढ़ाया था, जो क्षहरात वंश का मूलोच्छेद करनेवाले थे जिन्होंने सातबाहन वंश के यश का प्रतिष्ठापन किया था; सभी मंडलों के द्वारा जिनके घरण पूजित होते थे जिन्होंने प्राक्षण क्षत्रिय श्रादि चारों वर्षों में वर्णसंकर वृत्ति का प्रतिरोध कर दिया था; अनेक समरों में जिन्होंने शत्रओं के समूह को विमित किया था, जिनकी विजय-पताका अपराजित बनी रही, और जिनकी श्रेष्ठ राजधानी शत्रुओं के लिये दुर्धर्ष बनी रहो; जो अपने वंश के पूर्व पुरुषों की परंपरा से प्राप्त विपुल राज शब्द से युक्त थे आगमों में जो मांडार थे; सत्पुरुषों के लिये आश्रय थे; श्री के अधिष्ठान थे, सद्गुणों के स्रोत थे; जो १-कृष्णा नदी के ऊपर कर्नुल जिले की पहाड़ी । २-पश्चिमी घाट की पर्वतश्रृंखला का दक्षिणी भाग। ३-महानदी और गोदावरी के बीच की शृखला । ४-५-इनकी पहचान अभी तक अनिश्चित है। क्षहरात वंश का तत्कालीन प्रतापी शासक नहपान था, जिसको परास्त कर गौतमीपुत्र शातकणि ने उसके प्रचलित सिक्कों पर अपनी मुहर लगवा दी थीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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