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________________ १२६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका वर्षों तक कृत सवत का प्रयोग अक्षांश और देशांश के एक परिमित क्षेत्र में ही हुआ। नांदसा ( उदयपुर, सं० २८२), बर्नाला ( जयपुर, सं० २८४), बड़वा ( कोटा, सं० २९५), विजयगढ़ (भरतपुर, सं०४२८), मंदसोर (मालवा, सं० ४६१, ४९३, ५२९, ५८९) और नगरी (चित्तौड़, सं०४८१) इस क्षेत्र की सीमाओं को सूचित करते हैं। मोटे तौर पर दक्षिणी जयपुर से उज्जैन तक के प्रदेश में मालवगण का विस्तार था और वहीं पर कृत संवत् का प्रयोग हुआ। इस क्षेत्र के बाहर काल-गणना के दूसरे प्रकार प्रचलित थे। बाहर जब गुप्त संवत् जैसे प्रतापी संवत् का व्यापक प्रचार था उस समय भी मालवक्षेत्र में मालवगण के अपने कृत संवत् में ही कालगणना होती थी। यह इस बात का प्रमाण है कि मालवगण का इस संवत् के साथ कितना घनिष्ठ और अंतरंग संबंध था। शिलालेख भी इसका दृढ़ साक्ष्य देते हैं कि मालवगण की स्थापना से संवत् की काल-गणना का प्रारंभ हुआ-मालव-गणस्थिति-वशात् काल-ज्ञानाय लिखितेषु।' (यशोधर्मन् का मंदसोर लेख, स०५८९, ई० ५३२)। मालवगण-स्थिति मालवगण की स्थिति शब्द का ठीक अभिप्राय क्या है ? हमारी सम्मति में स्थिति का सीधा अर्थ स्थापना है। मालवगण की स्थापना का यह अर्थ नहीं है कि उस गण की सत्ता पहले अविदित थी। मालव जाति का जो इतिहास अब तक ज्ञात है उसके अनुसार ई० पू० चौथी शताब्दि में मालव पंजाब में बसे थे। तुद्रकों के साथ मालवों का बड़ा मेल था और दोनों का संयुक्त सैनिक संगठन बड़ा प्रचंड था। पाणिनि के 'खंडकादिभ्यश्च' सूत्र के गणपाठ में क्षुद्रक और मालवों की समिलित सेना को क्षौद्रकमालवी सेना कहा गया है (क्षुद्रकमालवात्सेना सज्ञायाम् )। मालवों ने सिकंदर से रणभूमि में लोहा लिया था। सिकदर. के साथी यूनानी इतिहासकारों ने मालवयुद्ध का बड़ा ही रोमांचकारी वर्णन किया है। वीर मालवों के एक भीम बाण ने सिकंदर के पाव को भेदकर उसे लगभग मृत्यु के मुख तक पहुँचा दिया था। मालवों का यह कराल क्रोध उस यूनानी सेनापति के काल को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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