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________________ साहसांक विक्रम और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की एकता १११ दन्ताघाताकुलितदशनस्तत्पुनर्वीक्ष्यमाणो ___ मन्दं मन्दं स्पृशति करिणीशङ्कया साहसाङ्क ॥ वेतालस्य !* सदुक्तिकर्णामृत ग्रंथ शक ११२७ अथवा संवत् १२६२ का लिखा हुआ है। यह प्रथ प्रबंधचिंतामणि से ९९ वर्ष पहले लिखा गया था। इस प्रथ में यह श्लोक वेताल-रचित कहा गया है। प्रबंधचिंतामणि में यही श्लोक कालिदास आदि के नाम से उद्धृत है। परपरा के अनुसार वेताल कवि विक्रम का राजकवि था। इस प्रकार वेताल, कालिदास और साहसांक अथवा विक्रम समकालिक ही थे। ७-यही श्लोक संवत् १४२० के समीप लिखी गई शाङ्ग धरपद्धति में पाया जाता है। वहाँ इसका पाठ अधिक अशुद्ध है। देखिए विशिष्ट राजप्रकरण ७३. हस्ती बन्यः स्फटिकघटिते भित्तिभागे स्वविम्बं दृष्ट्वा दृष्ट्वा प्रतिगज इति त्वद्विषां मन्दिरेषु । दन्ताघाताद्गलितदशनस्तं पुनर्वीक्ष्य सद्यो मन्दं मन्दं स्पृशति करिणीशङ्कया विक्रमार्क ॥४॥ __ कयोरप्येतो। शाङ्गधरपद्धति के मुद्रित संस्करण में इस श्लोक के कर्ता का नाम नहीं लिखा है। परंतु शाङ्गधर के पाठ से एक बात स्पष्ट हो जाती है। मेरुतुग और श्रीधरदास के पाठों में जो व्यक्ति साहसांक पद से संबोधित किया गया है, वही व्यक्ति शाङ्गधर के पाठ में विक्रमार्क नाम से पुकारा गया है। मेरुतुग के इस प्रबंध के प्रारंभ में भी उसे विक्रमा कहा है। वस्तुतः साहसांक और विक्रमाक नाम पर्याय ही थे। -विक्रमार्क और विक्रमादित्य नाम में भी कोई भेद नहीं था। अर्क और आदित्य पद भी पर्यायवाची ही हैं। ग्वालियर के एक शिलालेख में लिखा है * लाहौर संस्करण, पृ० २१९ । . . . . . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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