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________________ साहसांक विक्रम और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की एकता (क) अपनी पत्रकौमुदी में लिखता है विक्रमादित्यंभूपस्य कीर्तिसिनिदेशतः। श्रीमान् वररुचिर्धीमांस्तनोति पत्रकौमुदीम् ॥ . अर्थात् श्रीमान् वररुचि ने विक्रमादित्य भूप की आज्ञा से पत्रकौमुदी रची। ( ख ) अपने आर्या-छंदोबद्ध लिंगानुशासन सबंधी एक प्रथ के अंत में लिखता है इति श्रीमदखिल - वाग्विलासमंडित • सरस्वतीकंठाभरण-अनेकविशख-श्रीनरपति - सेवित - विक्रमादित्यकिरीटकोटिनिघृष्ट-चरणारविंद. प्राचार्य-वररुचि-विरचितो लिंगविशेषविधिः समाप्तः। अर्थात् महाप्रतापी विक्रमादित्य के पुरोहित अथवा गुरु आचार्य वररुचि ने लिंगविशेषविधि मथ समाप्त किया। (ग) अपने एक काव्यप्रथ के अंत में लिखता है- इति समस्तमहीमण्डलाधिपमहाराज - विक्रमादित्य - निदेशलब्ध. श्रीमन्महापण्डित-वररुधिविरचितं विद्यासुन्दरप्रसङ्गकाव्यं समाप्तम् । इस प्रथ विद्यासुदर के प्रारंभ में लिखा है- 'महाराज साहसांक की सभा में विद्वद्गोष्ठी हो रही थी। महाराज ने अपने पंडितों से कहा कि कवि चौर और विदुषी विद्या की कथा लिखनी चाहिए। इस पर वररुचि ने कथा लिखनी आरभ की।'... 'विद्यासुदर में कवि कालिदास और शंकर शिव का उल्लेख है।' __अध्यापक शैलेंद्रनाथ मित्र-लिखित पूर्वोद्धृत विवरण से यह बात सर्वथा स्पष्ट होती है कि वररुचि-वर्णित विक्रमादित्य का एक नाम साहसांक भी था । यह समकालिक साक्ष्य बड़े महत्त्व का है। इसका बल न्यून नहीं. किया जा सकता। * द्वितीय अखिलभारतवर्षीय प्राच्यसभा का विवरण । लेखक-अध्यापक शैलेंद्रनाथ मित्र, पृ० २१६-२१८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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