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________________ ( ५६ ) कलिकाल कल्पतरू पदवी, गुरू सार्थक करु नारा । सोतों को झकझोर जगाया, देकर धर्म आधारा रे ॥१६॥ पंडित मोतीलालजी नेहरू, गुरु उपदेश को धारा । धुम्रपान का त्याग किया था राष्ट्रीय नेता प्यारा रे ॥१७॥ पंडित मदन मालवीय मोहन, गुरु आज्ञा शिरधारा । दर्शन जैन की कुर्सी थापी, विश्वविद्यालय मंझारा रे ॥१७|| आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधारा । गुरू वल्लभ को दीपक पूजत, दीपक सम उजियारा रे ॥१९॥ काव्यम् भवि जीव बोधक, तत्व शोधक, जिन मताम्बुज भास्करम् । जगत् वल्लभ विजय वल्लभ, युग प्रधान सूरीश्वरम् ॥ परमेष्ठि पद में मध्य पद के, धारकम् भव तारकम् । गुरूदेव वल्लभ सूरि पूजन, सर्व विघ्न निवारकम् ।। ( मन्त्र :) ॐ ह्रीं श्रीं परम गुरूदेव, परम शासन मान्य, सूरि सार्वभौम जं० यु० प्र० भट्टारक जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय वल्लम सूरीश्वर, चरण कमलेभ्यो दीपकं यजामहे स्वाहा ॥शा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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