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________________ ( ५४ ) अणगार । ज्ञानवान गुणवान गुरु, मूर्ति मोहन गार । धर्म प्रभावक सूरीश्वर, भव जल तारण हार ॥ अंजनशलाका बिनौली प्रतिष्ठा कर नार । दे उपदेश कुआ बने, हो हरिजन उद्धार ॥ पालावत कल्लूमल की, लाज रखी प्रतिष्ठा मन्दिर हुई, अलवर जय जयकार ॥ सिंघोजी जसराज को, वल्लभ का आधार । वरकाणा जीवन दिया, शिक्षण के हितकार || प्रवर्तिनी आर्या दानश्रोजी, विदुषी कहलाय । शिक्षण हित सहयोग दे, गुरु भक्ति मन लाय ॥ सम्मेलन विद्यार्थी, पाटण मंगलकार । देव धरम गुरु आसता, वल्लभ की जयकार | ( सोरठ चाल — कुबजाने जादू डारा ) - गुरु विजयवल्लभ सूरि प्यारा, जो भवोदधि तारण हारा रे ॥ अ ॥ पुण्यवान गुणवान् सुनिर्भय समयज्ञ कुशल व्यवहारा । निष्कामी निर्मल शुद्ध चिद् घन, उचित के जाननहारा रे ||१|| कवि शिरोमणि सज्झाय स्तवना, धर्म हेतु करनारा । राग रागिनी पूजाओं की रचना विविध प्रकारा रे ||२|| परमत वादी सिंह शिरोमणि जो सुविहित अणगारा । राष्ट्रीय भाषा हिन्दी मानी, देश काल अनुसारा रे ॥३॥ व्याख्यानी विज्ञानी तपस्वी, तत्व ज्ञान भण्डारा । धर्म धुरन्धर ज्ञान दीवाकर, जगजीवन हितकारा रे ||४|| Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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