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'विजय जी रखा था। यहाँ तक ही नहीं परन्तु आपको अपने ' पट्टधर के रूप में सम्बोधन करते हुए पंजाब की रक्षा करने तथा श्रावकों को सत्यधर्मी और ज्ञानवान बनाने के हेतु स्थान स्थान पर सरस्वती मन्दिरों की स्थापना कराने का सन्देश देते थे
और अन्त में पंजाब श्री संघ को यह फरमाकर कि पंजाब की रक्षा वल्लभ करेगा ऐसी भविष्यवाणी करते हुए विक्रम सं. १६५३ के ज्येष्ठ शुक्ला ८ को गुजरांवाला पंजाब (हाल पाकि•स्तान ) में इस नश्वर देह का त्याग कर स्वर्ग विमान विहारी हो गये।
पंजाब के ग्रामों ग्राम से एकत्रित हुई जनता को पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज के सरस्वती मन्दिरों की स्थापना के संदेश को समझाकर आप पंजाब में स्थान स्थान पर श्री
आत्मानन्द जैन सभाओं, विद्यालयों, पुस्तकालयों, तथा गुरु· कुलों के स्थापन की प्रेरणाएं देते थे। तत्पश्चात् गुरुदेव के
अमर संदेश की ज्योति भारत भर में याने पेप्सु-पंजाब, उत्तर 'प्रदेश, राजस्थान ( मारवाड़-गोड़वाल-मेवाड़) मध्य प्रदेश, गुजरात-सौराष्ट्र (महा-गुजरात), महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में प्रगटाते थे।
आज इस ग्राम तो कल दूसरे प्राम तो परसों तीसरे ग्राम इस प्रकार चोर लुटेरों के संकटों को सहनकर, गर्मी सर्दी की . परवाह किये बिना निरन्तर विहार कर समस्त भारत में श्री
- आत्मानन्द जैन गुरुकुल-गुजरांवाला, श्री आत्मानंद जैन विद्याShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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