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पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के साथ पंजाब में जगह जगह विचरण करते हुए अनेक व्यक्तियों के हृदय में शास्त्रार्थ से, वाद-विवाद से जैन धर्म की अहिंसा, अनेकान्तवाद तथा अपरिग्रह के सन्देश की ज्योति प्रगटाई।
अंजनशलाका, प्रतिष्ठा महोत्सव आदि अनेक धार्मिक प्रसंगों पर पूज्यश्री आत्मारामजी महाराज के सान्निध्य में विधि-विधानों का सच्चा अनुभव प्राप्त करते थे।
ईर्ष्यालुओं द्वारा मन्दिर आम्नाय सम्प्रदाय पर झूठे आक्षेपों की पुस्तकें प्रकाशित करने पर आपने उनके प्रत्युत्तर में "गप्प-दीपिका समीर" नामक पुस्तक लिखकर विरोधियों का मुंह बन्द कर दिया।
लुधियाना में उपदेश देकर अपने गुरु के नाम पर "श्री हर्ष •विजय ज्ञान भण्डार" की स्थापना करवाई। तथा पूज्यश्री मात्माराम जी महाराज द्वारा लिखित समस्त ग्रन्थों की प्रेस कापी तैयार करते थे एवं महुवा निवासी भाई श्री वीरचन्द राघवजी गांधी जैसे बैरीस्टर को विश्व धर्म परिषद्, चिक्कागो जाने के पूर्व धार्मिक विषयों में पूरी-पूरी जानकारी कराने में बाप पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के प्रत्येक कार्य में सहाय-रूप बने थे और इसी कारण पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज, आपकी योग्यता देख कर भाई श्री डाह्या भाई को भागवती दीक्षा प्रदान कर आपको प्रथम शिष्य के रूप में
सौंपते हैं जिनकी दीक्षा का नाम पूज्य श्री ने मुनि श्री विवेक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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