SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७१ ) सूरि सार्वभौम सद्गुरुजी, दीर्घ दृष्टि बतलाय ! अयोग्य दीक्षा मत कोई देवो, शासन के हितदाय ॥१४॥ आतम वल्लभ सूरि समुद्र, मरूधर राट् कहाय । दास ऋषभ चरणों का चाकर, गुरू भक्ति गुणगाय ॥१५॥ : दोहा : गोडीजी के ट्रस्टी संग, संघ सकल हुलसाय । शासन मान्य सूरीश्वर की, आज्ञा शीश उठाय ॥ विक्रम निधि नभ भूमि कर ठाणा नगर सुहाय । उपाध्याय समुद्र विजय, सूरीश्वर पद पाय || करता ओच्छब ठाट से, साठ सहस्त्र नर नार । वासक्षेप गुरु वल्लभ का, वर्ते जय जयकार || भोगीलाल लहरचन्द, पाटण का कहलाय । सद्गुरू पर श्रद्धा अटल, साचो भक्त कहाय ॥ लाल बाग उपाश्रय, विनती अर्ज सुनाय । भक्त वत्सल कृपा करो, चातुमास बिताय ।। रमण पारख कपड़ वंज, गुरु चरणों में जाय । जेशिंग लल्लू पाटण का, चरणों शीश झुकाय ।। बरड़ प्यारेलालजी, पंजाबी कहलाय । तन मन धन अर्पण करे, धार्मिक उत्सव मांय ॥ तिथी चर्चा झगड़ा बुरा, सुन लो ध्यान लगाय । पंचांग जैन महेन्द्र से, मूहुर्च सब सच पाय ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy