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________________ ( ७० ) जैन धर्म विषयक प्रश्नोत्तर, देखो नजर उठाय । स्वधर्मी बन्धु की भक्ति, करना गुरु फरमाय ॥३॥ दूध त्याग की प्रतिज्ञा से, वातावरण फैलाय । स्वधर्मी भक्ति उत्तम है, भारत भर में थाय ॥8 पांच लाख एकत्रित होता, स्वधर्मी हित दाय । खींमजी छेड़ा सेवा करता, भक्ति रंग रंगाय ॥५॥ पूर्वाचार्य प्रभावक सूरि, जयन्ती मनवाय । तपा खरत्तर भेद मिटावो, गुरू उपदेश सुनाय ||६|| जगद्गुरू की अष्ट प्रकारी, पूजा सब मन भाय । प्रेरक भारत दिवाकर थे, ऋषभ कृति बनाय ॥७॥ संघ चतुर्विध मध्य इक है, साध्वियां समुदाय । ज्ञानी ध्यानी प्रवचन करती, जिन शासन हितदाय || दारू बन्दी आन्दोलन को, काँग्रेस चलवाय । सद्गुरु के व्याख्यान कराकर जनता लाम उठाय ॥९॥ दारू माँस छींकनी त्यागो, सद्गुरूजी फरमाय । चमत्कार को देख के जनता, आज्ञा शीश उठाय ॥१०॥ गांजा भांग तमाकु त्यागे, नर नारी समुदाय । वल्लभ गुरू के चरण कमल में, जनता शीश झुकाय ॥११॥ आवक तप उपधान की माला, स्वप्न को कहाँ ले जाय । जैसी जिसकी भावना होवे, उस खाते में जाय ॥१२॥ साधारण खाता इक ऐसा, सब खातों में जाय । तिस कारण आवक हो उसमें, सूरि सम्राट बताय ॥१३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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