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काधिक रुपमें निवास करती है। जिनके प्रताप से मनुष्य को संगीत चित्र लेखन, शिल्प, कला कौशल्य, वक्तव्य किंवा मुदितादि कला प्राप्त होती है, और इस अमूल्य एवं महत्व के साधनों में लेखन कला का साधन बहुधा उत्तम और उंची कक्षामें लेजाने के हेतुभूत माना गया है । समस्त देशों के साहित्योपासक व्यक्ति, ज्ञानाभ्यासी तत्ववेत्ताओं की तर्फ दृष्टि विस्तरित कर देखा जाय तो उक्त कला के प्रभाव से ही उच्चतम श्रेणी पर आरूढ हो, जन समाज के नेता बने हैं। उसको यदि अन्य स्वरूपमें कथन किया जाय तो सर्व कला कौशल्य का मुख्य तत्त्व " विचार श्रेणीकी प्रबलता परही निर्भर है " और इस श्रेणी को प्रदीप्त की जाय तो जिन महान मनोरथों पर मनुष्य विजय करना चाहता है, वही परिणाम उस उद्यमी आत्मा के लिये निकटवर्ती उपस्थित होना असंभव नहीं है। लेकिन बिचार कोष का व्यय इस तरह करना उत्तम होता है कि, पूर्व के महान बिचारज्ञों के बिचार से अपने विचारों की तुलना कर, अपने से अधिक विद्वान द्वारा निर्णय कराना यही मार्ग हितकर प्रतीत होता है.
बिनार श्रेणी के दो भेद मानना भी लाभदायी हैं । प्रथम तो व्यवहारिक दृष्टि से, द्वितीय निश्चियात्मक दृष्टि से. इन दो भेदोंमें प्रथम भेद को पहले विधी पुरःसर जानना चाहिये, क्योंकि इसकी सत्ता चतुर्दश गुणस्थान तक अपना बल बताती है । अतएव यह आदरणीय है। द्वितीय भेद का विवरण ज्ञानीगम्य है.
भूतकालमें भी तत्ववेत्तागण विचार श्रेणी को बहुधा विस्तरित
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