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निवेदन.
पाठक गण ! जैन साहित्य संसारमें " बस्त्र वर्ण सिद्धी" नामके विषयमें पुस्तक की वृद्धि हुई है । यह विषय न नो औपदेशिक है, न सामाजिक है, यह तो केवल साधु धर्म और जिसमें भी मुख्यतया वस्त्र वर्ण विषयक विवरणके शास्त्रोक्त प्रमाणोंका चर्चात्मक लेख है । इस संसारको कठिन उपाधियोंसे निवृत्त होकर जिन महानुभावोंने निवृत्तिमाग अंगीकार किया है, उनमें से किसीको “ वस्त्रवर्ण " विषयक शंका उपस्थित हुइ हो, उसका इस पुस्तकमें संपूर्ण समाधान है ।
वर्तमानमें मनुष्योंकी बहुधा ऐसी प्रवर्तीय दृष्टी गत होती हैं, कि जिनके प्रभावसे मनुष्यों में चंचलता, अहंभाव उत्पन्न होकर भवभ्रमणकी तर्फ विशेष प्रवर्तीय हो जाती हैं, और महान अगाध प्रवाहमें गीरनेवाले प्राणी अज्ञान-दुनिके प्रतापसे शीव सुखके अधिकारी नहीं हो सक्ते । क्योंकि उनका हृदय विक्षिप्त होकर भव भ्रमणमें गीर जाता है । आप जानते होंगे कि थोडे समय पूर्व वस्त्रवर्ण विषय चर्चाका जन्म रतलाम ( मालवा ) नगरमें हुवा था और वह इस भाषा-शैलीमें प्रतिपादित था के जिसको महानुभाव-ज्ञानी-साक्षर निन्दात्मक द्रष्टी से देखते थे। तबसे ही मेरे मनमें यह भावना उत्पन्न हुइ थी, के इस विषयको सरल बनानकी कोशीस करना चाहिय । तद. नुसार शास्त्र वेत्ता मुनिवर्यादिसे विज्ञप्ति कीगइ। और जिन मुनि महाराजाओंने इस विषयका साहित्य संपादन किया है,
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