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________________ जैन धर्म की विशेषता महामहोपाध्याय सत्य संप्रदायाचार्य श्री स्वामी राममिश्र जी शास्त्री, प्रोफेसर संस्कृत कॉलिज बनारस महाम० डा. श्री सतीशचन्द्र भूषण प्रिंसिपल गवर्नमेण्ट संस्कृत कालिज, कलकत्ता, जैन मत तब से प्रचलित हुआ है जब से संसार में सृष्टि का प्रारम्भ हुआ । जैन दर्शन वेदान्त आदि दर्शनों से पूर्व का है। जैन धर्म का स्याद्वादी किला है. जिस के अन्दर वादी-प्रतिवादियों के मायामयी गोले नहीं प्रवेश कर सकते । बड़े-बड़े नामी आचार्यों ने जो जैन मत का खण्डन किया है वह ऐसा है जिसे सुन, देखकर हँसी आती है। -सम्पूर्ण लेख जैनधर्म महत्व भाग १, पृ० १५३-१६५। भगवान् वर्द्धमान महावीर ने भारतवर्ष में आत्मसंयम के सिद्धान्त का प्रचार किया। प्राकृत भाषा अपने संपूर्ण मधुमय सौंदर्य को लिये हुये जौनियों की रचना में ही प्रकट हुई है। ___जैन साधुएक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करने के द्वारा पूर्ण रीति से व्रत नियम और इन्द्रिय संयम का पालन करता हुआ जगत के सन्मुख आत्म-संयम का एक बड़ा ही उत्तम आदर्श प्रस्तुत करता है। -जैनधर्म पर लोक० तिलक और प्रसिद्ध विद्वानों का 'अभिमत पृ० १२ । [ १०१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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