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________________ Sashasthaर और और और और और औ वैदिक काल में जैन धर्म श्री स्वामी विरुपाक्ष वडियर धर्म भूषण, पण्डित, वेदतीर्थ, विद्यानिधि, एम० ए०, प्रो० संस्कृत कालिज, इन्दौर ईर्षा, द्व ेष के कारण धर्म प्रचार को रोकने वाली विपत्ति के रहते हुये जैन शासन कभी पराजित न होकर सर्वत्र विजयी ही होता रहा है । इस प्रकार जिस का वर्णन है वह 'अर्हन्त देव' साक्षात् परमेश्वर ( विष्णु ) स्वरूप हैं । इस के प्रमाण भी आर्यग्रन्थों में पाये जाते हैं। उपरोक्त अर्हन्त परमेश्वर का वर्णन वेदों में भी पाया जाता है । हिन्दुओं के पूज्य वेद और पुराण आदि ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर तीर्थंकरों का उल्लेख पाया जाता है, तो कोई कारण नहीं कि हम वैदिक काल में जैन धर्म का अस्तित्व न मानें । पीछे से जब ब्राह्मण लोगों ने यज्ञादि में बलिदान कर "मा हिंस्यात् सर्वभूतानि” वाले वेद - वाक्य पर हरताल फेर दी उस समय जैनियों ने हिंसामय यज्ञ, यागादि का उच्छेद करना आरम्भ किया था बस, तभी से ब्राह्मणों के चित्त में जैनों के प्रति द्वेष बढ़ने लगा, परन्तु फिर भी भागवतादि महापुराणों में ऋषभदेव के विषय में गौरव युक्त उल्लेख मिल रहा है । - जैन धर्म पर लो० तिलक और प्रसिद्ध विद्वानों का अभिमत पृ० १७ । ॐ *** १०२ ] झू झू झू Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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