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________________ "जिस घर में गाजर, मूली, शलजम आदि कन्दमूल पकाये जाते हैं वह घर मरघट के समान है। पितर भी उस घर में नहीं आते और जो कन्दमूल के साथ अन्न खाता है उसकी शुद्धि और प्रायश्चित सौ चान्द्रायण व्रतों से भी नहीं होता । जिसने अभक्षण का भक्षण किया उसने ऐसे तेज़ ज़हर का सेवन किया जिसके छूने से ही मनुष्य मर जाता है । बैङ्गन आदि अनन्तानन्त बीजों के पिण्ड के खाने से रौरव नाम के महा दुखःदायी नरक में दुःख भोगने पड़ते हैं"। श्री कृष्ण जी के शब्दों में अचार, मुरब्बा आदि अभक्ष्य, आलू, शकरकन्द आदि कन्द और गाजर, मूली, गंठा आदि मूल खाने वाले को नरक की वेदना सहन करनी पड़ती है । १ यस्मिन् गृहे सदा नित्यं मूलकं पच्यते जनैः । श्मशान तुल्यं तद्व श्म पितृभिः परिवर्जितम् ।। मूलकेन समं चान्नं यस्तु भुक्ते नराधमः । तस्य शुचिर्न विद्यत चान्द्रायण शतैरपि । भुक्तं .हलाहलं तेन कृतं चाभक्ष्यभक्षणम् । वृत्ताकभक्षणं चापि नरो याति च रौरवम् ।। -शिवपुराण २ चत्वारो नरकद्वारं प्रथमं रात्रिभोजनम् । परस्त्रीगमनं चैव संधानानन्तकाय ते ॥ ये रात्रौ सर्वदाहारं वर्जयन्ति सुमेधसः । तेषां पक्षोपवासस्य मासमेकेन जायते ।। नोटकमपि पातव्यं रात्रावत्र युधिष्ठिरः । तपस्विनो विशेषेण गृहिणां च विवेकिनाम् ॥ -महाभारत अर्थात्-श्रीकृष्ण जी ने युधिष्ठिर जी को नरक के जो (१) रात्रि भोजन, (२) परस्त्री-सेवन, (३) अचार-मुरब्बा आदि का भक्षण, (४) बाल , शकरकन्दी आदि कन्द अथवा गाजर, मूली, गंठा आदि मृल का खाना, यह चार द्वार बताये और कहा कि रात्रि भोजन के त्याग से १ महीने में १५ दिन के उपवास का फल स्वयं प्राप्त हो जाता है। ५१४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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