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________________ भूतपूर्व प्रधानमंत्री Gladstone के शब्दों में युद्ध, काल और प्लेग की तीनों इकट्ठी महा-आपत्तियाँ भी इतनी बाधा नहीं पहुँचा सकती जितनी अकेली शराब पहुँचाती है । ३-मधु का त्यागः शहद मक्खियों का उगाल है । यह बिना मस्त्रियों के छत्ते को उजाड़े प्राप्त नहीं होता इसीलिये महाभारत में कहा है, "सात गाँवों को जलाने से जो पाप होता है, वह शहद की एक बूंद खाने में है । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जो लोग सदा शहद खाते हैं, वे अवश्य नरक में जावेंगे"। मनुस्मृति में भी इसके सर्वथा त्याग का कथन है, जिसके आधार पर महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थप्रकाश के समुल्लास ३ में शहद के त्याग की शिक्षा दी है। चाणक्य नीति में भी शहद को अपवित्र वस्तु कहा है इसलिये मधु-सेवन उचित नहीं है। ४-अभक्षण का त्यागः जिस वृक्ष से दूध निकलता है उसे क्षीरवृक्ष या उदुम्बर कहते हैं । उदुम्बर फल त्रस जीवों की उत्पत्ति का स्थान है इस लिये अमरकोष में उदुम्बर का एक नाम 'जन्तु फल' भी कहा है और एक नाम हेमदुग्धक है, इसलिये पीपल, गूलर, पिलखन, बड़ और काक ५ उदुम्बर के फलों को खाना त्रस अर्थात् चलते-फिरते जन्तुओं की संकल्प हिंसा है । गाजर, मूली, शलजम आदि कन्द-मूल में भी त्रस जीव होते हैं, शिवपुराण के अनुसार, ..The combined harm of three great scourges-war, famine " and pestilence is not as terrible as wine drinking". I bid. P.97 १२ सप्त ग्रामेषु दग्धेषु यत्पापं जायते नृणाम् । । तत्पाप जायते पुंसां मधु विन्द्वेक भक्षणात् ॥ -महाभारत ३ वर्जयेन्मधुमांसं च......"प्राणिनां चैव हिंसनम् । मनु. अ. २, श्लो. १७७ ४ सुरां मत्स्यान् मधुमांसमासवं कृसरौदनम् । - धूतैः प्रवर्तितं ह्येतत् नैतद् वेदेषु कल्पितम् ॥-चा. नीति अ.४, श्लो. १६ [५१३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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