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________________ जान कर स्पष्ट कह दिया, “वर्तमान हिंसामयी व्यवस्था में संसार भारत से ही विश्व-शान्ति की आशा करता है" । भारत के अहिंसा तत्त्व से ही प्रभावित होकर, विश्वशान्ति को स्थिर रखने वाली सबसे बड़ी संस्था United Nations General Assembly का सभापति भारत वीराङ्गना श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को चुना । हिंसामयी अनेक हथियार निष्फल रहने पर संसार ने हमारे ही प्रधान मन्त्री पं० जवाहरलालजी को कोरिया-युद्ध रोकने के लिये अहिंसा का अतिशय दिखाने को कहा तो इन्होंने अपने उस अहिंसा के हथियार से जो महात्मा गाँधी जी बतौर अमानत इनको सौंप गये थे, सारे संसार को चकित करते हुए कोरिया युद्ध को समाप्त कराने में सफल हो गये । क्या पण्डित जी की यह विजय महात्मा जी की विजय, अहिंसा की विजय, जैनधर्म की विजय तथा भारत की विजय नहीं है ? देश की उन्नति तथा बेकारी को दूर करने के लिये भारत सरकार ने पाँचसाला योजनाएँ बनाई और देश को इसमें सहयोग देने को कहा तो जैनियों ने करोड़ों रुपये के सरकारी कर्जे खरीदे। अकेले Sahu-Jain Ltd. और इनके अधिकारी कारखानों में आज तक लाखों करोड़ों रुपये भारत सरकार की Securities में लगा हुआ है । २५ अक्तूबर १६५२ को हमें स्वयं इनकी Rohtas Industries Ltd. देखने और इसके Guest House में ठहरने का अवसर मिला तो श्री V. Podder, वर्क मैनेजर से लेकर श्री बुधू मजदूर तक को अत्यन्त सन्तुष्ट पाकर इनके उत्तम प्रबन्ध की प्रशंसा करनी पड़ती है। यही कारण है कि हर प्रकार योग्य जानकर इनके Managing Director साहू शान्तिप्रसाद जी जैन को भारत के व्योपारियों ने अपनी सबसे बड़ी संस्था Fede१ इसी ग्रन्थ का पृ० ३५२ ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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