SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्र जी के चारित्र के प्रभाव से दर्द थोड़ी देर में मिट गया', जिसकी खुशी में इसके उमरावों ने कुर्बान करने के लिये ५०० गौएँ जमा की। अकबर को मालूम हुआ तो उसने हुक्म दिया, "मुझे सुख हो. इस खुशी में दूसरों को दुख हो, यह कैसे उचित है ? इनको फौरन छोड़ दो २" । अबुल फ़ज़ल के शब्दों में दिगम्बर जैन मुनियों का भी अधिक प्रभाव था । अकबर की टकसाल का प्रबन्धक टोडरमल जैनधर्मी था । अकबर ने राज - आज्ञापत्र द्वारा कश्मीर की झीलों से मछलियों का शिकार खेलना, जैन तीर्थों, पालीताना और शत्रुञ्जय की यात्रा करने वालों से कर का न लेना " प्रत्येक पञ्चमी, अष्टमी, चतुर्दशी, दशलक्षण पर्व तथा कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के अन्त आठ दिनों अर्थात् अठाई - पर्व तथा जैन त्यौहार आदि सब मिलाकर साल भर में ६ मास जीवहिंसा को क़ानून द्वारा बन्द करना जैनियों के प्रभाव का ही फल था अकबर ने मांस भक्षण का निषेध करते हुए कहा है : ૬ 1 "यह उचित नहीं है कि मनुष्य अपने उदर को पशुओं की क़बर बनायें । मांस के सिवा और कोई भोजन न होने पर भी बाज को मांसभक्षण का दण्ड अल्पायु मिलता है तो मनुष्यों को जिसका भोजन मांस नहीं, मांस भक्षण का क्या दण्ड मिलेगा ? कसाई आदि जीव-हिंसा करने वाले जब शरह से बाहर रहें तो मांस भक्षण करने वालों को - श्राबादी के अन्दर रहने का क्या अधिकार है ? मेरे लिये कितने सुख की बात होती, यदि मेरा शरीर इतना बड़ा होता कि मांसाहारी केबल मेरे १ - २ सूरीश्वर और सम्राट, पृ० १४६, अकबर और जैनधर्म पृ० 'ख' पर है | ३ Ayeen-i-Akbari ( Lucknow) Vol. III, P. 87. ४ New Indian Antiquary. Vol. I, P. 519. ५ अकबर और जैनधर्म, पृ० ११ । & Killing of animals and birds on certain days of the year was made capital sentence by Akbar for his contract with Jains.-Prof. S. N. Banerji's Religion of Akbar, P. 81. ४६२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy