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________________ १५८७ में अकबर ने शान्तिचन्द्र जी को जीवहिंसा बन्द करने के फरमान दिये थे' | अकबर ने श्री विजयसिंह सूरि को लाहौर बुलवाया, जहाँ इन्होंने ३६३ विद्वानों से इस विषय पर वाद-विवाद किया कि 'ईश्वर कर्ता-हर्ता नहीं है। इनके सफल शास्त्रार्थ से प्रभावित होकर अकबर बहुत सन्तुष्ट हुआ और इसने उन्हें सवाई की पदवी दी। जैन मुनि श्री शान्तिचन्द्र जी का भी अकबर पर बड़ा प्रभाव था। ईद से एक दिन पहले इन्होंने अकबर से कहा कि आज मैं यहाँ से जाऊँगा। बादशाह ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि कल यहाँ हजारों नहीं बल्कि लाखों जीवों का वध होने वाला है । इन्होंने कुरानशरीफ़ की आयतों से सिद्ध किया किं कुर्बानी का मांस और खून खुदा को नहीं पहुँचता'. बल्कि परहेजगारी पहुँचती है । रोटी और शाक खाने ही से रोजे : क़बूल होजाते हैं। इस पर उसने मुसल्मानों के मान्य धर्म-ग्रन्थ बहुत से उमरावों के सामने पढ़वाये और उनके दिल पर भी इसकी सचाई जमा दी पश्चात् उसने ढंढोरा पिटवा दिया कि कल ईद के दिन कोई किसी जीव को न मारे'। अकबर के मस्तक में पीड़ा होरही थी। बहुत इलाज किये, परन्तु आराम न हुआ तो जैनाचार्य श्री भानुचन्द्र जी को बुला कर वेदना दूर करने को कहा । उन्होंने उत्तर दिया कि मैं वैद्य या हकीम नहीं। अकबर ने कहा, आपका वचन भूठा नहीं होता। केवल इतना कह दें कि दर्द जाता रहे। उन्होंने आश्वासन दिया और कहा कि अभी मिट जायेगा। बादशाह की श्रद्धा और श्री भानु १-२ अकबर और जैनधर्म, पृ० १०। ३-४ इसी ग्रन्थ के फुटनोट नं० ३-४ पृ० ६५ । ५ श्री विद्याविजय जी : सूरीश्वर और सम्राट प्र. १४४, जिसका हवाला अकबर और जैनधर्म पृ० 'ख' पर है। [ ४६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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