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________________ स्कंधपुराण, अग्निपुराण' , नारदीव पुराण , कूर्मपुराण', गरुडपुराण, ब्रह्माण्ड पुराण', वाराह पुराण,६, लिङ्गपुराण आदि अनेक प्रामाणिक ग्रन्थ और ऐतिहासिक विद्वान भी जैन धर्म की पुष्टि करते हैं कि "प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव जी के पुत्र भरत के नाम पर ही इस देश को भारतवर्ष कहते हैं तो कोई कारण नहीं कि संसार ऐतिहासिकरूपसे इस सत्य को स्वीकार न करे? २४ तीर्थङ्कर और भारत के महापुरुष "The Message of Truth and Non-violence aasociated with the Jaina Thinkers is what the world needs today". -Dr. S. Radhakrishnan: Glory of Gommateshvara P.IX. १. ऋषभदेव जी-अयोध्या के राजा नाभीराय के पत्र थे, जो इस वर्तमान युग में केवल जैनधर्म के संस्पापक ही न थे, ८. ऋषभश्वोर्वरितानां हिताय ऋषिसत्तमाः । खण्डानि कल्पयामास नवान्यपि हिताय च ।। तत्रापि भरते ज्येष्ठ खण्डेऽस्मित् स्पृहणीयके । तन्नाम्ना चैव विख्यात' खण्ड च भारत तदा ॥ -शिवपुराण अ० ५२ । ६. ऋषभद्भरतो यज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः ॥५१॥ तस्माद्भारत वर्ष तस्य नाम्ना विदुबु धाः ।।५२।। -चायुपुराण अ० ३७ । १. ऋषभो मेरुदेव्यां च ऋषभाद्रतोऽभवत् ॥११॥ भरताद्भारतं वर्ष भरतात्सुमतिस्त्वभवत् ।।१२।। -आग्नेय पुराण १० १० । २. आसीत्परा मुनिश्रेष्ठो भरतो नाम भूपतिः। आर्षभो यस्य नामेदं भारतखण्डमुच्यते 1५11 -नारदीय पु. ख. अ. ४८ 1 ३-७. कूर्मपुराण अध्याय ४: श्लोक ३७-३८ गरुड़ पुराण अ० १ श्लोक १३, ब्रह्माण्ड पराण पूर्वाध अनुषङ्गपाद, अ० १४ श्लोक ५६-६२ । बाराह धराण, अ० १४ (अत्र नामः सर्ग कथयामि) तथा अ० १४ 1 लिङ्ग पराण अ० ४७ श्लोक १६-२३1 ८. कल्याण गोरखपुर, वर्ष २१, पृ० १५१ । भारत के प्राचीन राजवंश भा० २ पृ० १ । ज्ञानोदय वर्ष २ पृ० ४४७ व Jain Antiquary Vol. IX P 76 [४११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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