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________________ हिमाह दत्तिण' वर्ष भरताय पिता ददौ । तस्मात्तु भारत वर्ष तस्य नाम्ना महात्मनः ॥४१ -मार्लण्डेय पुराण अ० ५० भावार्थ अग्नीध्र के पुत्र नाभी और नग्भी के पुत्र ऋषभ और ऋषभदेव के भरतादि सौ पुत्र थे, जिनको राज्य देकर श्री ऋषभदेव जी तप करने के लिये चले गये । भरत जी को हिमवान पर्वत के दक्षिण की तरफ का क्षेत्र दिया था, जिनके नाम पर यह क्षेत्र भारतवर्ष कहलाता है। ____ जन्मभूमि, निर्वाणभूमि, मात-पिता तथा पुत्रों के नाम, उनके गुणों और जीवन पर विचार पूर्वक ध्यान देने और शब्दकोष' में ऋषभदेव का अर्थ देखने से यह निश्चितरूप से स्पष्ट होजाता है कि वेदों, पुराणों आदि ग्रन्थों में जिनका कथन है, वही श्री ऋषभदेव इस युग में जैन धर्म के स्थापक प्रथम तीर्थङ्कर और इनके पुत्र श्री भरत जी प्रथम चक्रवर्ती सम्राट् हैं। आश्चर्य है कि समस्त संसार का कल्याण करने वाले ऐसे योगी महापुरुष को ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार करने में भी हम संकोच करते हैं। प्राचीन इतिहास के खोजी विद्वानों को अत्यन्त प्राचीन सामग्री प्राप्त करने के लिये उनकी जीवनी श्रादिपुराण अर्थात् महापुराण' का अवश्य स्वाध्याय करना चाहिये, जो Bandarkar जैसे विद्वानों के शब्दों में बहुत उत्तम Eneyclopaedic work है ।। १. (क) हिन्दी विश्वकोष (कलकत्ता ऋषभदेव = जैनियों के प्रथम तीर्थङ्कर ।। (ख) हिन्दी शब्दसागर कोष (काशी) ऋषभदेव - जैनधर्म के आदि तीर्थकर । (ग) भास्कर ग्रन्थमाला संस्कृत हिन्दी कोष (मेरठ) ऋषभदेव = नाभी के पुत्र ___ आदि तीर्थकर । (घ) शब्द कल्पद्र म कोष-ऋषभ = आदि जिन । ङ. शब्दार्थ चिन्तामणि कोष-ऋषभभदेव = तीर्थकर । २. महापुराण (दोनों भाग का मूल्य २०) रु०) भारतीय ज्ञानपीठ ४ दुर्गाकुण्ड बनारस से मँगाइये। ३. Foot Note No.9 of this book's Page 199, ४०६ 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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