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________________ मनुष्य जन्म बार २ नहीं मिलता। वीरप्रभु के उपदेश से मुझे यह दृढ़ विश्वास हो गया है कि जिन विषय भोगो और इन्द्रियों की पूर्तियों को हम सुख समझते हैं वह वर्षों तक नरकों के महादुख सहने का कारण हैं । मात-पिता ! आप तो हमेशा मेरा हित चाहते रहे हो तो अविनाशी हित से क्यों रोकते हो ? राजा और रानी अपने बालक के प्रभावशाली वचन सुनकर सन्तुष्ट होगये और उसे जिनदीक्षा लेने की आज्ञा देही । जिस प्रकार कैदी को बन्दी - खाने से छूटने पर आनन्द आता है उसी प्रकार राजकुमार एवन्त आनन्द मानता हुआ सीधा भ० वीर के समवशरण में गया और उनके निकट जैन साधु होगया । महाराजा उदयन पर वीर प्रभाव Udayana the great king of Sindhu-Sauvira became the disciple of Lord Mahavira. —Some Historical Jain Kings & Heroes P. 9. प्राकृत कथा संग्रह में 'सिन्धु - सौवीर के सम्राट् उदयन को एक बहुत ही बड़ा महाराजा बताया है, कि जिनकी कई सौ मुकुट बन्द राजा सेवा किया करते थे' । रोरूकनगर उनकी राजधानी थी' । उनके राज्य में नर-नारी ही क्या पशु तक भी निर्भय थे इस लिये उनका राजनगर वीतभय के नाम से प्रसिद्ध था, प्रभावती उनकी पटरानी, थी, जो महाराजा चेटक की पुत्री और भ० महावीर की मौसी थी । महारानी प्रभावती पक्की जैनधर्मी थी, उनकी धर्ममिष्टा ने ही राजा उदयन को जैनधर्मी बनाया था । वह दोनों इतने वीर' भक्त थे कि अपनी नगरी में एक सुन्दर जैन मन्दिर बनवाकर उसमें भ० महावीर की स्वर्ण-प्रतिमा विराजमान की थी। वे जैनधर्म को भलीभांति पालने वाले आदर्श श्रावक थे । जैन मुनियों की सेवा के लिये तो इतने प्रसिद्ध थे कि इस १-७, भ० महावीर ( कामताप्रसाद) पृष्ठ २५० - २५१ । [ ३६३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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