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वशरण उनकी नगरी में आया तो आनन्द और उनकी पत्नी शिवनन्दा ने भ० वीर से श्रावक के ब्रत लिए और यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि जो हमारे पास है उससे अधिक अपने पास न रखेंगे। ब्याज पर चढ़े हुए चार करोड़ अशर्फियों का सूद ग्रहण करें तो सम्पत्ति बढ़ जावे, कारोबार में लाभ हो तो सम्पत्ति बढ़े। हर साल एक बच्चा हो तो चालीस हजार पशुधन से सालभर में चालीस हजार बच्चे बढ़ जावें, उनको बेचें तो नकदी बढ़ जावे इस लिए लोभ और मोह नष्ट होजाने से वह महासन्तोषी और इच्छ। रहित होकर श्रावक ब्रत धारने के कारण वह इस दुखी संसार में भी महासुखी थे।
राजकुमार एवन्त पर वीर प्रभाव पोलसपुर के सम्राट विक्रम के पत्र एवन्तकुमार ने भ० महावीर के निकट दीक्षा ली। -श्रीचौथमल जी : भ० महावीर का आदर्श जीवन, पृ० ४१६ । __ पोलासपुर में वीर-समवशरण आया तो वहां के राजा विक्रम ने उनका स्वागत किया । शब्दालपुत्र नाम के कुम्हार ने जिसकी पाँचसौ दुकानें' मिट्टी के बर्तनों की चलती थीं और तीन करोड़ अशर्फियों का स्वामी था, वीर प्रभु से श्रावक के ब्रतलिये । वहां के राजकुमार एवन्त ने जैन साधु होने की ठान ली। मातापिता से आज्ञा मांगी तो उन्होंने कहा कि अभी तुम बालक हो विधि अनुसार धर्म कैसे पाल सकोगे ? राजकुमार ने कहा कि धर्म पालने की विशेषता आयु पर निर्भर नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास पर है। वैसे भी आयु का क्या भरोसा ? मृत्यु के लिये बच्चा और बूढ़ा एक समान है। यदि जीवित भी रहा तो यह कैसे विश्वास कि सदा निरोगी रहूँगा, रोगी से धर्म पालन नही हो सकता । बुढ़ापे में तो धर्म साधन की शक्ति ही नहीं रहती । यह
१-३. भ० महावीर (कामताप्रसाद) पृ० १३४ ।
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