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________________ का हाल पूछा तो भगवान की दिव्य-ध्वनि खिरी जिसमें सुनाई दिया कि तुम पिछले जन्म में बहुत दरिद्री थे, पड़ोसी के घर खीर वनते हुए देखकर तुमने भी अपनी माता से खीर बनाने के लिये कहा मगर अधिक गरीब होने के कारण वह दूध आदि का प्रबन्ध न कर सकी । गांव के लोगों ने तुम्हारी जिद को देखकर खीर बनाने की सारी सामग्री जुटा दी । माता तुमको परोसनेवाली ही थी कि इतने में एक जैन साधु, आहार निमित्त उधर आगये । तुम भूल गये इस वात को कि बड़ी कठिनाईयों से अपने लिये खीर तैयार कराई थी। तुमने मुनिराज को परघाह लिया और उस सारी खीर का आहार उन को करा दिया और स्वयं भूखे रहे । मुनि-अाहार के फल से इस जन्म में तुम इतने निरोगी और भाग्यशाली हुए हो कि करोड़ों की सम्पत्ति तुम्हारी ठोकरों में फिरती है। शालिभद्र यह विचार करके कि थोड़े से त्याग से इतना अधिक संसारी सुख सम्पत्ति मिली तो इन संसारी क्षणिक सुखों के त्याग से मोक्ष का सच्चा सुख प्राप्त होने में क्या सन्देह हो सकता है ? आप जैन मुनि होगये। ___ महाराजा श्रोणिक ने अपने राज्य के सबसे बड़े सौदागर को मुनि अवस्था में देखा तो उनसे पूछा कि आपने करोड़ों की सम्पत्ति एक क्षण में कैसे त्याग दी ? मुनि शालिभद्र ने उत्तर दिया "अब . तक मैंने जो सौदे किये उसका केवल इस एक ही जन्म में सुख . प्राप्त हुआ, परन्तु जो सौदा आज किया है उसका सुख सदा के लिये प्राप्त होगा। अर्जुभमाली पर वीर प्रभाव राजगृह के नगरसेठ सुदर्शन वीरवन्दना को जानने लगे तो उन के पिता ने कहा, "अर्जुनमाली महादुष्ट है । छः पुरुष और एक स्त्री तो नियम से वह प्रत्येक दिन मार ही डालता है । तुम यहां से ही ३८२] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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