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________________ इन्द्रभूति पर वीर-प्रभाव जब लोग एक पैसे की मिट्टी की हंडिया को भी ठोक बजा कर खरीदते हैं, तो अपने जीवन के सुधार और बिगाड वाले मसले को बिना परीक्षा किये क्यों आंख मीच कर ग्रहण करना चाहिये ? इन्द्रभूति गौतम आदि अनेक महापंडितों ने तर्क और न्याय की कसौटी पर भगवान महावीर के उपदिष्ट ज्ञान को कसा और जब उसे सौ टंच सोना समान निखिल सत्य पाया तो वे उनकी शरण में आये। -श्री कामताप्रसाद : भगवान महावीर प १३८ । श्री वर्द्धमान महावीर के सर्वज्ञ हो जाने पर उनकी दिव्य ध्वनि' न खिरी तो सौधर्म नाम के प्रथम स्वर्ग के इन्द्र ने अपने ज्ञान से गणधर की आवश्यकता समझ कर उसकी खोज में चल दिया । उस समय ब्राह्मणों का बड़ा जोर था। चारों वेदों के महा ज्ञाता और माने हुए विद्वान् इन्द्रभूति थे। इन्द्र ब्राह्मण का वेष थारण कर उनके पास गया और उनसे कहा, "कि मेरे गुरु ने इस समय मौन धारण कर रखा है, इस लिये आप ही उसका मतलब बताने का कष्ट उठावें ।" इंद्रभूति गौतम बहुत विद्वान थे, उन्होंने कहा-“मतलब तो मैं बताऊँगा मगर तुमको मेरा शिष्य बनना पड़ेगा"। इन्द्र ने कहा, "मुझे यह शर्त मंजूर है परन्तु आप उस का मतलब न बता सके तो आप को मेरे गुरु का शिष्य होना पड़ेगा"। इन्द्रभूति को तो अपने ज्ञान पर पूरा विश्वास १. Mahavira's message was in deed to all livings, and so the language be used was understood by beasts and birds as well as by men. Mr. Alfred Master I.C.S.; C.I.E. Vir Nirvan Day in Landon (World Jain Mission, Aliganj. 24) P, 6. ३३४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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