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________________ पहिचाना न अपने आप को" । वीर स्वामी तो पर्वत के समान निश्चल, समुद्र के समान गम्भीर, पृथ्वी के समान क्षमावान थे, उपसर्गों को पाप कर्मों का फल जान कर सरल स्वभाव से सहन करते थे और उपसर्ग करने वालों को कर्मों की निर्जरा करनेवाला महामित्र समझते थे । चण्डकौशिक के उपसर्ग का उनको न खेद था न क्षमा मांगने का हर्ष। उनकी उदारता से प्रभावित होकर नागराज ने प्रतिज्ञा करली कि में किसी को बाधा न दूंगा । उस का जीवन बिलकुल बदल चुका था । ज़हर की जगह अमृत ने ले ली थी । लोग हैरान थे कि जिस चण्डकौशिक को जान से मारने के लिये देश दीवाना होरहा था, वह आज उसको दूध पिला रहा है । यह तो है श्री वर्द्धमान महावीर के जीवन का केवल एक दृष्टान्त, उन्होंने ऐसे अनेकों पापियों का उद्धार किया। ग्वाले का उपसर्ग वर्द्धमान महावीर जङ्गल में तप कर रहे थे, उसी जगह एक ग्वाला बैलों को चरा रहा था । साधारण पुरुष जान कर ग्वाले ने कहा कि मैं अभी आता हूं, तुम मेरे बैलों को देखते रहना । उन के कुछ उत्तर न देने पर भी ग्वाला बैलों को उनके भरोसे पर छोड़ कर चला गया। थोड़ी देर बाद वापस लौटा तो बैलों को वहां न पाया । वे चरते चरते कुछ दूर निकल गये थे । उसने महावीर स्वामी से पूछा कि मेरे बैल कहां हैं ? प्रभु तो ध्यान में मग्न थे, बैलों को वहां न देख कर ग्वाला पहले से ही जोश में आरहा था, वीर स्वामी का कोई उत्तर न पाकर उसे और भी अधिक क्रोध उपजा और दुर्वचन कहते हुए बोला कि क्यां तुझे सुनाई नहीं देता जो हमारी बात का जवाब तक भी नहीं दिया। श्रा, आज तेरे दोनों कान खोल दूं। उस पापी ने भाव देखा न ताव दो लकड़ी १. भगवान् महावीर का आदर्श जीवन, पृ० २१७ । [ ३२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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