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________________ वीर-चरण-रेखा जैसे योद्धामो में वासुदेव, फूलों में अरविन्द कमल, क्षत्रियों में चक्रवर्ती श्रष्ठ हैं । वैसे ही ऋषियों में श्री वर्धमान महावीर प्रधान हैं, कि जिनके चरणों में अपना सर झुकाने के लिए स्वर्ग के इंद्र और संसार के चक्रवर्ती लाल यित रहते ह । -सूत्र कृताङ्ग सोने की पालिकी में चलने वाले राजकुमार वर्द्धमान आहार करने के बाद नंगे पांव पैटल जङ्गल को वापिस लौट आये और एक वृक्ष के नीचे पद्मासन लगाकर ध्यान में लीन हो गए । थोड़ी देर बाद उसी रास्ते से पुष्पक नाम का सामुद्रिक शास्त्री गुजरा तो उसने वीर स्वामी के चरणों की रेखा देखकर अपन सामुद्रिक ज्ञान से जान लिया कि यह चरण किसी बहुत भाग्यशाली और प्रतापी सम्राट के हैं, उसने विचार किया कि अवश्य काई महाराजा राता भूल कर इस जङ्गल में आ घुसा । यदि मैं उसको सही रास्ता बता दूं तो वे मुझे इतना धन देंगे कि में सारी उम्र की जीविका की चिन्ता से मुक्त हो जाऊँगा। यह सोचकर वह पांव के चिन्हों के साथ-साथ चलता हुआ उसी स्थान पर पहुँच गया कि जहां वीर स्वामो ध्यान में मग्न थे। वह आगे का चलने लगा. परन्तु पांव के निशान आगे न दीखे । वह केवल उस वृक्ष तक ही थे। सामुद्रिक शास्त्री को वहां कोई सम्राट नज़र न पड़ा । वीर स्वामी को साधारण साधु जान कर विचार किया कि शायद मेरी समझ में कुछ अन्तर रह गया हो, उसने वहीं अपनी पुस्तक को बग़ल से निकाल कर वीर स्वामी की रेखाओं से मिलान किया तो वह आश्चर्य करने लगा कि पुस्तक के अनुसार तो ये बड़े भाग्यशाली सम्राट होने चाहिये, परन्तु यहाँ तो इनके पास लङ्गोटी तक भी नहीं। उन सोचा कि मेरी यह पुस्तक ३०२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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