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________________ के निकट सोलह कारण भावनाएँ' मन, वचन काय से भाकर तीर्थकर नामक महापुण्य प्रकृति का बंध किया। आयु के अन्त में आराधनापूर्वक शरीर त्याग कर, उत्तम तप के प्रभाव से अच्युत नाम के सोलहवें स्वर्ग के पुष्पेत्तर विमान में देवों के देव इन्द्र हुये। तीर्थकरपद __ पुण्य की महिमा देखिये जिसके कारण बिना इच्छा के भी स्वर्ग के उत्तम सुख स्वयं प्राप्त हो जाते हैं और स्वर्ग से भी महाउत्तम विमान आप से आप मिल जाते हैं । विमान में सम्यगदृष्टि देवों से तत्व-चर्चा करने, तीर्थंकरों के कल्याण को उत्साहपूर्वक मनाने सरल स्वभाव, मन्द कषाय तथा अहिंसामयी व्यवहार करने के कारण अच्युत विमान से आकर अब मैं माता त्रिशलादेवी का पुत्र वर्द्धमान हुआ हूं। वीर-वैराग्य पूर्व जन्म के चित्र जब सिनेमा की फिल्म के समान एक के १. विस्तार के लिये "जैनधर्म प्रकाश" पृ० १०१ । २. श्वेताम्बर जैनों की मान्मता है कि पहले महावीर का जीव ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवनन्दा के गर्भ में आया था, परन्तु इन्द्र की आज्ञा से नैगमेशदेव ने उसे क्षत्राणी त्रिशला की कोख में पहुंचा दिया, क्योंकि तीर्थकर हमेशा क्षत्रिय होते हैं । श्वेताम्बरों की इस मान्यता के विषय में श्वेताम्बरीय विद्वान् श्री चन्द्रराज भण्डारी के निम्न-वाक्य दृष्टय हैं- "इस में सन्देह नहीं है कि उपरोक्त प्रमाण में से बहुत से प्रमाण बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । इन से तो प्रायः यही जाहिर होता है कि 'गर्भहरण' की घटना कवि की कल्पना ही है' | भ० महावीर, पृ० ६५)। . -श्री कामताप्रसाद : भगवान् महावीर पृ० ६८ । [ २८३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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