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________________ है । अब की बार महीन्द्र स्वर्ग में धर्मात्मा लोगों की संगति मिली जिसके कारण मैं विषय-भोगों में न फँस कर मन्द कषाय रहा। स्वर्ग के सुखों को पुण्य तथा नरक, निगोद को पाप कर्मों का फल जान कर, माला मुरझाने पर भी मैं दुखी न हुआ, तो इसका फल यह हुआ कि स्वर्ग की आयु समाप्त होने पर मैं मगध देश की राजधानी राजगृह में विश्वभूति नाम के राजा की जैनी नाम की रानी से विश्वनन्दी नाम का बड़ा पराक्रमी राजकुमार हुआ। राजा का विशाखभूति नाम का एक छोटा भाई था, जिसकी लक्ष्मणा नाम की रानी और विशाखनन्द नाम का पुत्र था । यह सारा परिवार जैनी था। विश्वनन्दी बड़ा बलवान और धर्मात्मा था, वह श्रावक व्रत बड़ी श्रद्धा से पालता था। ___ संसार को असार जान कर अपने आत्मिक कल्याण के लिये विश्वभूति ने संसार त्यागने की ठान ली। उसके राज्य का अधिकारी तो उसका पुत्र विश्वनन्दी ही था, परन्तु उसको बच्चा जान कर अपना राज्य छोटे भाई विश्वभूति के सुपुर्द करके अपने पुत्र विश्वनन्दी को युवराज बना दिया और स्वयं श्रीधर' नाम के मुनि से जिन दीक्षा लेकर जैन-साधु होगया । युवराज विश्वनन्दी के बागीचे पर विशाखनन्दी ने अपना अधिकार जमा लिया। समझाने से न माना और लड़ने को तैयार होगया तो विश्वनन्दी विशाखनन्दी पर झपटा। विशाखनन्दी भय से भागकर एक पेड़ पर चढ़ गया। विश्वनन्दी ने एक ही झटके में उस वृक्ष को जड़ से उखाड़ दिया। विशाखनन्दी भाग कर पत्थर के एक खम्भे पर चढ़ गया, परन्तु विश्वनन्दी ने अपनी कलाई की एक ही चोट से उस पत्थर के खम्भे को भी तोड़ दिया । विशाखनन्दी अपनी जान बचाने के लिये बुरी तरह भागा । उसकी ऐसी १. महावीर पुराण (कलकत्ता) पृ० १७ । [ २७५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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