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________________ प्रचार किया' । संसार त्यागने के कारण फिर सौधर्म स्वर्ग प्राप्त हुआ | वहां से आकर श्वेतिक नाम के नगर में अग्निभूति ब्राह्मण की गौतमी नाम की स्त्री से अग्निसह नाम का पुत्र हुआ । यहाँ भी परिव्राजक धर्म का संन्यासी होकर प्रकृति आदि २५ तत्वों का प्रचार किया। ___ संसार त्यागने के कारण फिर मर कर सनतकुमार नाम के तीसरे स्वर्ग में देव हुआ। वहाँ से फिर इसी भारत क्षेत्र के मन्दिर नाम के नगर में गौतम नाम के ब्राह्मण की कौशाम्भी नाम की स्त्री से अग्निभूति नाम का पुत्र हुआ । यहाँ भी सांख्य मत का प्रचार किया । संसार त्यागने के हेतु महेन्द्र नाम का चौथा स्वर्ग प्राप्त हुआ। वहां से आकर मैं उक्त मन्दिर नाम के नगर में साङ्कलायन नाम के ब्राह्मण की मन्दिरा नाम की पत्नी से भारद्वाज नाम का पुत्र हुआ । पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण त्रिदण्डी दीक्षा ग्रहण की और तप के प्रभाव से देवायु का बंध कर ब्रह्म नाम के पांचवें स्वर्ग में देव हुआ' । संसारी मोह-ममता के त्याग का देखिये कितना सुन्दर फल मिलता है ! सम्यग्दर्शन न होने पर भी संसारी सुखों का तो कहना ही क्या, स्वर्गों तक के भोग आप से आप प्राप्त होजाते हैं तो सम्यग्दर्शन के प्राप्त हो जाने पर मोक्ष के अविनाशक सुखों में क्या सन्देह हो सकता है ? त्रस, स्थावर, नर्क और निगोद भाग में कूदना, विष का सेवन करना, समुद्र में डूब मरना उत्तम है, किन्तु मिथ्यात्व सहित जीवित रहना कदाचित् उचित १-६ श्री महावीरपुराण (जिनवाणी-प्रचारक कार्यालय कलकत्ता) पृ० १४-१५ । [२७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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