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________________ ज्ञान के प्रभाव से उनके हृदय का शङ्का रूपी अन्धकार तत्काल आप से आप मिट गया, जिस प्रकार सूर्य को देख कर संसारी अन्धकार नष्ट हो जाता है, इस लिये उन्होंने बड़ी भक्ति से उन का नाम 'सन्मति' रखा। वीर की महावीरता Having been subdued by the great strength of Vardhamana, Sangama, the celestial being paid homage to the conqueror and called Him by the name of 'MAHAVIRA-The Great Hero. -Uttara Purana, 74-205. श्री वर्द्धमान महावीर दोयज के चन्द्रमा के समान प्रतिदिन बढ़ रहे थे। आठ वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने अहिंसा, सत्य, अचौर्य, परिग्रह परिमाण तथा ब्रह्मचर्य पाँचों अणुब्रत सम्पूर्ण विधि के साथ पालने प्रारम्भ कर दिये थे। उनकी वीरता अनुपमरूप और बज्रमयी शरीर की धूम इस लोक में तो क्या देवलोक तक में फैल गई थी, एक दिन उन की वीरता की. प्रशंसा स्वर्ग लोक में हो रही थी, कि सङ्गम नाम के एक देव को शङ्का हुई कि भूमिगोचरी वर्द्धमान स्वर्ग के देवों से भी अधिक शक्तिशाली कैसे हो सकते हैं ? उसने उनकी परीक्षा करने की ठान ली। १. संजयस्यार्थसंदेहे संजाते विजयस्य च । जन्मानन्तरमेव नमभ्येत्यालोकमात्रतः ॥२८२॥ तत्संदेहगते ताभ्यां चारणाभ्यां स्वभक्तितः । अस्त्येष सन्मतिर्देवो भावीति समुदाहृतः ॥२८३॥ -उत्तरपुराण, पर्व ७४ | २. कामताप्रसाद : भ० महावीर, पृ० ७५ । 3-8. The Indra of the Soudharma Devo-Locka said, “O Gods, Vard hamana's Valour and fortitude are un. २५० ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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